नई दिल्ली। गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन (AICC Meeting) 9 अप्रैल को संपन्न हो गया। इस अंतिम दिन एक ऐसी घटना घटी, जिसने पार्टी की आंतरिक कलह को खुलकर सबके सामने ला दिया। कानपुर से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आलोक मिश्रा ने मंच से खुलेआम वर्तमान महानगर अध्यक्ष पवन गुप्ता पर गंभीर आरोप लगाते हुए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से सवाल पूछ डाले।
आलोक मिश्रा, जो कि दो बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं, ने सार्वजनिक रूप से कहा कि पार्टी ने ऐसे व्यक्ति को शहर अध्यक्ष बनाया है जिसके एक बेटे की विचारधारा भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़ी है और दूसरा समाजवादी पार्टी (SP) का सदस्य है। इस बयान के बाद अधिवेशन स्थल पर कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया।
शीर्ष नेतृत्व की मौजूदगी में उठाए सवाल
इस पूरे घटनाक्रम की खास बात यह रही कि जब मिश्रा बोल रहे थे, तब मंच पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, और सांसद राहुल गांधी खुद मौजूद थे। मिश्रा ने अपने बयान में खास तौर पर खरगे और राहुल गांधी को संबोधित करते हुए कहा:
“जो कार्यकर्ता 1982 से पार्टी में हैं, वो आज भी कांग्रेस की मजबूती के लिए आवाज़ उठा रहा है। हम भाजपा से बाद में लड़ते हैं, पहले आपस में ही उलझ जाते हैं।”
संगठनात्मक पारदर्शिता की मांग
आलोक मिश्रा ने अपने भाषण में इस बात पर जोर दिया कि पार्टी को पहले अंदरूनी असंतोष और विचारधारात्मक अस्पष्टता को दूर करना होगा। उन्होंने कहा कि अगर कोई शहर अध्यक्ष ऐसा है, जिसके परिवार के सदस्य अन्य पार्टियों से जुड़े हैं, तो उसकी निष्ठा संदेह के घेरे में आती है। मिश्रा ने यह भी कहा कि अगर पार्टी हाईकमान यह निर्णय करता है कि ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष बनाना चाहिए, तो वह उस निर्णय को स्वीकार करेंगे। लेकिन इससे पहले इस पर खुली चर्चा और सोच जरूरी है।

पद के लिए चुनाव ना लड़ने का आग्रह
मिश्रा ने पार्टी नेतृत्व से एक और अहम मांग रखी। उन्होंने आग्रह किया कि शहर या जिला अध्यक्षों को चुनाव लड़ने की अनुमति न दी जाए। उनका कहना था कि यदि अध्यक्षों को चुनावी टिकट का विकल्प खुला रखा गया, तो वे संगठन की निष्पक्षता छोड़कर केवल अपनी उम्मीदवारी की तैयारी में लग जाएंगे। इससे पार्टी का बुनियादी ढांचा कमजोर होगा।
कांग्रेस के लिए आत्ममंथन का समय
यह बयान ऐसे समय आया है जब कांग्रेस पार्टी खुद को फिर से मजबूत करने और आगामी लोकसभा चुनावों के लिए तैयार करने में जुटी है। गुजरात में हुआ यह राष्ट्रीय अधिवेशन पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को सशक्त करने और नीति-निर्माण की दृष्टि से अहम माना जा रहा था। लेकिन आलोक मिश्रा के बयान ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि जमीनी स्तर पर कई नेताओं के भीतर असंतोष और अनसुलझे मुद्दे अब भी मौजूद हैं।
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आलोक मिश्रा का यह खुला बयान कांग्रेस के लिए एक चेतावनी स्वरूप है कि अगर संगठनात्मक पारदर्शिता और आंतरिक एकजुटता पर ध्यान नहीं दिया गया, तो विपक्ष की भूमिका निभाने के साथ-साथ चुनावी मैदान में विश्वसनीयता भी खो सकती है। पार्टी नेतृत्व के लिए यह ज़रूरी हो गया है कि वह ऐसे मुद्दों पर खुलकर संवाद करे और स्पष्ट दिशा तय करे।