दिल्ली की प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में एक बार फिर छात्र राजनीति गरमा गई है। इस बार विवाद का केंद्र बना है स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की तस्वीर, जिसे ABVP से जुड़े छात्र नेता द्वारा छात्रसंघ (JNUSU) के कार्यालय में लगाया गया। इस कदम का वामपंथी संगठनों और छात्रसंघ के अन्य पदाधिकारियों ने विरोध किया है, जिससे परिसर में राजनीतिक तनाव बढ़ गया है।
यह विवाद 28 मई को तब शुरू हुआ जब ABVP से जुड़े JNUSU के संयुक्त सचिव वैभव मीणा ने वीर सावरकर की जयंती के अवसर पर छात्रसंघ कार्यालय में उनकी तस्वीर लगाई। मीणा ने कहा कि सावरकर न सिर्फ एक साहसी स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक दूरदर्शी विचारक भी थे, जिन्होंने आधुनिक भारत की परिकल्पना को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने यह भी कहा कि JNU को राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से जोड़ने की बजाय राष्ट्रवाद और देशभक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाना चाहिए।
JNUSU का विरोध और बयान
ABVP नेता के इस कदम को छात्रसंघ अध्यक्ष नीतीश कुमार और महासचिव मुंतेहा ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के खिलाफ बताया। एक संयुक्त बयान में उन्होंने कहा कि बिना परिषद की बैठक में प्रस्ताव पारित किए छात्रसंघ कार्यालय में कोई भी तस्वीर नहीं लगाई जा सकती।

बयान में कहा गया, “JNUSU ऑफिस सार्वजनिक स्थान है और इसमें कोई भी बदलाव या तस्वीर लगाना तभी संभव है जब सभी संगठनों की सहमति से प्रस्ताव पास हो। इस परंपरा को तोड़कर ABVP ने जानबूझकर टकराव की स्थिति पैदा की है।”
राजनीतिक और वैचारिक मतभेद
यह विवाद महज एक तस्वीर तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी वैचारिक टकराहट है। ABVP जहां वीर सावरकर को राष्ट्रभक्ति और हिन्दुत्व की प्रेरणा मानती है, वहीं वामपंथी छात्र संगठन उन्हें विभाजनकारी सोच का प्रतिनिधि मानते हैं।
JNU जैसे शैक्षणिक संस्थानों में यह विचारधारात्मक संघर्ष लंबे समय से चला आ रहा है। इससे पहले भी परिसर में भगवान राम, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, भगत सिंह जैसे ऐतिहासिक चेहरों को लेकर विवाद हो चुके हैं।
पूर्व घटनाओं से तुलना
यह पहली बार नहीं है जब सावरकर को लेकर विवाद हुआ है। दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भी सावरकर की विरासत पर छात्रों और शिक्षकों के बीच तीखी बहस हो चुकी है।
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JNU में वीर सावरकर की तस्वीर को लेकर शुरू हुआ यह विवाद संस्थान के भीतर जारी वैचारिक लड़ाई का नया अध्याय बन गया है। ABVP और वामपंथी छात्र संगठनों के बीच यह टकराव भविष्य में और उग्र हो सकता है। यह मामला केवल एक तस्वीर का नहीं, बल्कि यह सवाल भी है कि विश्वविद्यालयों में किस विचारधारा को जगह दी जाए और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कितना महत्व मिले।