राज्य में छात्रसंघ चुनाव की बहाली को लेकर छात्र संगठनों का आक्रोश दिन-ब-दिन तेज होता जा रहा है। शनिवार को राष्ट्रीय छात्र संघ (NSUI) के बैनर तले छात्रों ने अनोखे और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध दर्ज कराते हुए एक मौन रैली निकाली और मुख्यमंत्री के नाम खून से लिखा गया पत्र कॉलेज प्रशासन को सौंपा।
यह विरोध प्रदर्शन बीकानेर स्थित आरआर कॉलेज सर्किल से शुरू होकर कॉलेज परिसर तक गया, जहां छात्रों ने आंखों पर काली पट्टी बांधकर मौन रैली निकाली। काली पट्टी यह संदेश दे रही थी कि राज्य की सरकार युवाओं की आवाज़ नहीं सुन रही है और लोकतंत्र की पहली सीढ़ी — छात्रसंघ चुनाव — को जानबूझ कर नजरअंदाज किया जा रहा है।
राजनीति की पहली पाठशाला बंद क्यों?
एनएसयूआई के छात्र नेताओं का कहना है कि छात्रसंघ चुनाव केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि राजनीति की पहली पाठशाला है। यह युवाओं को नेतृत्व के लिए तैयार करता है, जहां वे विचार-विमर्श, संगठनात्मक क्षमता और जनप्रतिनिधित्व जैसे मूल्यों को आत्मसात करते हैं। छात्रों ने कहा कि यदि सरकार लोकतंत्र को मजबूत बनाना चाहती है, तो उसे विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में छात्रसंघ चुनावों को अनिवार्य रूप से फिर से शुरू करना चाहिए।
खून से लिखा पत्र, भावनाओं का इज़हार
प्रदर्शन का सबसे भावनात्मक पहलू तब सामने आया जब छात्रों ने कॉलेज प्राचार्य को मुख्यमंत्री के नाम खून से लिखा पत्र सौंपा। इस पत्र में छात्रों ने लिखा:
“छात्रसंघ चुनाव युवाओं के नेतृत्व विकास का आधार हैं। यह हमें लोकतंत्र की मूल भावना से जोड़ता है। यदि इन्हें रोका गया, तो लोकतंत्र की नींव कमजोर होगी। हमारी यही मांग है कि छात्रसंघ चुनाव तत्काल प्रभाव से बहाल किए जाएं।”
छात्रों ने इस पत्र के माध्यम से सरकार को यह संदेश देने की कोशिश की कि अब यह केवल राजनीतिक मांग नहीं, बल्कि युवाओं के अस्तित्व और भविष्य की लड़ाई बन चुकी है।

सरकार को चेतावनी: आंदोलन और तेज होगा
एनएसयूआई के नेताओं ने साफ चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही छात्रसंघ चुनाव बहाल नहीं किए गए, तो राज्य भर में आंदोलन तेज किया जाएगा। इसके तहत कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में धरने, प्रदर्शन, कक्षाओं का बहिष्कार और प्रशासनिक घेराव जैसी रणनीतियों को अपनाया जाएगा।
छात्रों की मांगें क्या हैं?
छात्रों द्वारा उठाई गई प्रमुख मांगें निम्नलिखित हैं:
- राज्य के सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव तत्काल प्रभाव से कराए जाएं।
- सरकार चुनावों में किसी प्रकार की राजनीतिक हस्तक्षेप न करे।
- छात्र प्रतिनिधियों को विश्वविद्यालय की निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी दी जाए।
लोकतंत्र की असली परीक्षा
यह विरोध केवल छात्र राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक लोकतांत्रिक अधिकार के संरक्षण की लड़ाई भी है। छात्रसंघ चुनावों के माध्यम से युवाओं को न केवल नेतृत्व का मौका मिलता है, बल्कि वे जनभावनाओं को समझने और सार्वजनिक जीवन में उतरने की दिशा में पहला कदम भी उठाते हैं।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
प्रदर्शन के दौरान कॉलेज प्रशासन शांत रहा, लेकिन उन्होंने छात्रों की भावनाओं को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री को पत्र पहुंचाने का आश्वासन दिया है। अभी तक राज्य सरकार की ओर से इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
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राज्य में छात्रसंघ चुनावों को लेकर छात्र संगठनों का आंदोलन धीरे-धीरे एक राजनीतिक जनांदोलन का रूप लेता जा रहा है। यदि सरकार ने समय रहते ठोस पहल नहीं की, तो यह आंदोलन युवाओं की शक्ति का बड़ा उदाहरण बन सकता है।