21 जुलाई की शाम को देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से अचानक इस्तीफा दे दिया। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया, लेकिन जिस समय, तरीके और घटनाक्रम के बीच यह इस्तीफा आया, उसने राजनीति में कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
धनखड़ पूरे दिन सक्रिय थे — मानसून सत्र की शुरुआत में उन्होंने दो अहम बैठकें कीं, जिनमें बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की बैठक और विपक्षी सांसदों से मुलाकात शामिल थी। किसी भी बातचीत या गतिविधि में उन्होंने सेहत को लेकर कोई इशारा नहीं किया। ऐसे में तीन घंटे के भीतर इस्तीफा देने का फैसला चौंकाता है।
दिनभर सक्रियता, शाम को इस्तीफा
धनखड़ ने दिन में 12.30 बजे BAC की बैठक बुलाई थी जिसमें बीजेपी नेता जेपी नड्डा और किरण रिजिजू मौजूद थे। फिर शाम 4.30 बजे दूसरी बैठक के लिए जब BAC के सदस्य दोबारा जुटे, तब ये दोनों नेता बैठक में नहीं आए। उपराष्ट्रपति ने नाराजगी जताई और बैठक को अगले दिन के लिए टाल दिया।
इसके बाद घटनाएं तेजी से बदलीं – शाम 7.15 से 7.50 तक संसद परिसर में टॉप कैबिनेट मंत्रियों के साथ बंद कमरे में मुलाकात हुई, जिसमें कथित तौर पर कुछ दबाव की स्थिति भी बनी। इसके डेढ़ घंटे बाद ही उनका इस्तीफा आ गया।
विपक्ष को भी नहीं भनक
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बताया कि वो शाम 5 बजे तक उपराष्ट्रपति के साथ थे और तब तक ऐसी कोई बात नजर नहीं आई जिससे लगे कि वो इस्तीफा देने जा रहे हैं। अखिलेश प्रसाद सिंह और प्रमोद तिवारी भी उस मीटिंग में मौजूद थे। सभी ने माना कि धनखड़ पूरी तरह सामान्य लग रहे थे।
इतना ही नहीं, 23 जुलाई को जयपुर में एक कार्यक्रम में उनकी भागीदारी तय थी, जिसका प्रेस नोट उपराष्ट्रपति सचिवालय ने पहले ही जारी कर दिया था।
महाभियोग प्रस्ताव की टाइमिंग भी अहम
21 जुलाई को ही राज्यसभा में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को लेकर विपक्ष ने नोटिस दिया था, जिसे धनखड़ ने स्वीकार भी कर लिया। यह दोपहर करीब दो बजे हुआ। बाद में उन्होंने लोकसभा में नोटिस दिए जाने की पुष्टि भी मांगी और कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू करने की बात की।

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह स्वीकारोक्ति सत्ता पक्ष को असहज कर सकती थी, क्योंकि महाभियोग प्रक्रिया संवेदनशील होती है और उसके लिए सभापति की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
राजनाथ सिंह के दफ्तर में हलचल
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, शाम को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के दफ्तर में अचानक हलचल तेज हुई। बीजेपी सांसद बिना कुछ बोले अंदर जाकर बाहर निकलते दिखे। सूत्रों के हवाले से बताया गया कि कुछ सांसदों से कोरे कागज़ पर दस्तखत भी करवाए गए, जिससे संदेह और गहरा गया है।
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धनखड़ के इस्तीफे का समय, घटनाक्रम और पृष्ठभूमि — सब मिलाकर संकेत देते हैं कि यह केवल स्वास्थ्य से जुड़ा फैसला नहीं है। यह इस्तीफा सियासी दबाव, अंदरूनी नाराजगी या संवैधानिक टकराव का परिणाम हो सकता है। विपक्ष इस पर खुलकर सवाल उठा रहा है और कई जानकार मानते हैं कि आने वाले दिनों में इसके राजनीतिक मायने और गहराई से सामने आ सकते हैं।
यह इस्तीफा केवल एक संवैधानिक पद से त्याग नहीं है, बल्कि संसद की गरिमा, न्यायिक जवाबदेही और सत्ता के भीतर चल रही गहरी हलचलों का प्रतीक भी हो सकता है।