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संत की वेशभूषा में छिपा ‘डॉक्टर डेथ’,125 से ज़्यादा किडनी ट्रांसप्लांट और कई हत्याओं का मास्टरमाइंड दौसा से गिरफ्तार

देश के सबसे कुख्यात अपराधियों में से एक, डॉ. देवेंद्र शर्मा, आखिरकार फिर एक बार दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में है। 125 से ज़्यादा अवैध किडनी ट्रांसप्लांट और कई दर्जन टैक्सी ड्राइवरों की हत्याओं का आरोपी यह शख्स राजस्थान के दौसा जिले के गुढाकटला गांव में संत के भेष में छिपा बैठा था। नाम बदलकर ‘संत दयादास महाराज’ बनकर वह न सिर्फ खुद को साधु बता रहा था, बल्कि 25 मई को वृद्धाश्रम के उद्घाटन की तैयारी भी कर रहा था।

साधु का चोला, अंदर कातिल की आत्मा

गांव में सफेद वस्त्र, माला और भभूत लगाए यह व्यक्ति खुद को झाड़-फूंक करने वाला संत बताता था। ग्रामीणों को शक नहीं हुआ क्योंकि वह धार्मिक प्रवचन देता था, महिलाओं को घरेलू इलाज बताता था और दिन-रात भक्ति में लीन दिखता था। किसी को अंदाजा भी नहीं था कि यह वही देवेंद्र शर्मा है, जिसे अपराध की दुनिया में ‘डॉक्टर डेथ’ के नाम से जाना जाता है।

दिल्ली पुलिस की महीनों की मेहनत रंग लाई

19 मई को दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की टीम ने दौसा जिले से उसे दबोचा। वह तिहाड़ जेल से पैरोल पर फरार था और पिछले कई महीनों से पुलिस उसकी तलाश कर रही थी। पुलिस ने सात शहरों—दिल्ली, अलीगढ़, आगरा, जयपुर, प्रयागराज, दौसा और भरतपुर—में सर्च ऑपरेशन चलाया, लेकिन देवेंद्र हर बार पुलिस को चकमा देता रहा। आख़िरकार एक गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस उसकी नई पहचान और ठिकाने तक पहुंच पाई।

7 उम्रकैद और एक फांसी की सजा

देवेंद्र शर्मा के खिलाफ हत्या, अपहरण, लूट और धोखाधड़ी के कुल 27 संगीन मामले दर्ज हैं। वह 7 मामलों में उम्रकैद की सजा भुगत रहा था और एक केस में उसे फांसी की सजा भी सुनाई जा चुकी है। यह पहली बार नहीं है जब उसने पैरोल का दुरुपयोग किया हो। 2020 में भी वह 20 दिन की पैरोल पर बाहर आया था और 7 महीने तक फरार रहा।

कौन है देवेंद्र शर्मा?

देवेंद्र शर्मा उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ का रहने वाला है। उसने 1984 में बिहार से BAMS की डिग्री प्राप्त की थी और राजस्थान के बांदीकुई में ‘जनता क्लिनिक’ नाम से आयुर्वेदिक प्रैक्टिस शुरू की थी। मगर 1994 में गैस एजेंसी घोटाले में धोखाधड़ी का शिकार होने के बाद उसने अपराध की दुनिया में कदम रखा।

1995 से 2004 तक उसने किडनी रैकेट, टैक्सी ड्राइवरों की हत्या और लाशों को मगरमच्छों को खिलाने जैसे जघन्य अपराध किए। उसका कहना है कि उसने 125 से ज़्यादा किडनी ट्रांसप्लांट्स में बिचौलिए की भूमिका निभाई और प्रत्येक ऑपरेशन के बदले 5–7 लाख रुपये कमाए।

वृद्धाश्रम खोलने का नाटक

गुढाकटला गांव में उसने 7 हजार रुपये किराए पर मकान लेकर ‘श्री बालाजी वृद्धाश्रम’ खोलने की योजना बनाई थी। इस आश्रम के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी, और 25 मई को उद्घाटन समारोह में राजस्थान सरकार के मंत्री भी आने वाले थे। यह सब देखकर कोई भी सोच नहीं सकता था कि इसके पीछे देश का एक कुख्यात अपराधी छिपा हुआ है।

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देवेंद्र शर्मा की गिरफ्तारी एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि क्या पैरोल व्यवस्था की निगरानी पर्याप्त है? यह भी विचारणीय है कि एक अपराधी बार-बार जेल से निकलकर नई पहचान के साथ सामाजिक ताना-बाना बुनने में कैसे सफल हो जाता है?

दिल्ली पुलिस की सफलता जरूर सराहनीय है, लेकिन देवेंद्र शर्मा जैसे अपराधी की बार-बार वापसी समाज और न्याय प्रणाली—दोनों के लिए चेतावनी है।

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