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Waqf Act 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, 73 याचिकाओं के बीच 7 राज्यों और केंद्र सरकार ने रखा पक्ष

वक्फ अधिनियम 2025 को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में बड़ा कानूनी संग्राम शुरू हो गया है। इस कानून को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने जा रही है। इन याचिकाओं में कई राजनीतिक दलों और संगठनों ने वक्फ कानून को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की है।

वहीं दूसरी ओर, देश के सात राज्यों ने इस कानून का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दाखिल की है। इन राज्यों ने अधिनियम को संवैधानिक करार देते हुए कहा है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन के लिए जरूरी है और इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया गया है। साथ ही, केंद्र सरकार ने भी कोर्ट में कैविएट (Caveat) दाखिल किया है, जिसका अर्थ है कि अदालत किसी भी अंतरिम आदेश से पहले केंद्र का पक्ष अवश्य सुने।

विवाद की जड़ में वक्फ अधिनियम 2025 के कुछ हालिया संशोधन हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में दायर 73 याचिकाओं में से दो याचिकाएं 1995 के मूल वक्फ अधिनियम को भी चुनौती देती हैं। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि यह कानून न केवल अल्पसंख्यक अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को भी प्रभावित करता है।

इस मामले में कई प्रमुख राजनीतिक नेताओं ने याचिकाएं दाखिल की हैं। इनमें AIMIM के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, AAP विधायक अमानतुल्ला खान, TMC नेता महुआ मोइत्रा, RJD सांसद मनोज कुमार झा, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद और अन्य नेता शामिल हैं। इनका कहना है कि संशोधित अधिनियम मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है और उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करता है।

राज्यों का पक्ष

वक्फ कानून के पक्ष में जिन सात राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, उन्होंने इसे एक “प्रशासनिक सुधार” बताया है। उनका कहना है कि इस कानून के जरिए वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता, जवाबदेही और कुशल प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सकता है। राज्यों ने स्पष्ट किया कि इस अधिनियम में किसी समुदाय के साथ न तो पक्षपात है और न ही भेदभाव।

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वक्फ अधिनियम 2025 को संसद में लंबी बहस के बाद पारित किया गया था। राज्यसभा में इसे 128 सदस्यों ने समर्थन दिया, जबकि 95 ने विरोध किया। लोकसभा में 288 वोट अधिनियम के पक्ष में पड़े, जबकि 232 सांसदों ने विरोध किया। इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी से यह बिल कानून बन गया।

अब सभी निगाहें सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि यह अधिनियम संवैधानिक कसौटियों पर खरा उतरता है या नहीं।

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