केरल: पिनाराई विजयन की सरकार ने राज्य के दो भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारियों को अनुशासनात्मक कारणों से निलंबित कर दिया है। इनमें से एक अधिकारी के गोपालकृष्णन, जो उद्योग और वाणिज्य विभाग के निदेशक हैं, और दूसरे अधिकारी एन. प्रशांत, जो कृषि विकास और किसान कल्याण विभाग के विशेष सचिव हैं।
“Mallu Hindu Officers” ग्रुप बनाने पर कार्रवाई
के गोपालकृष्णन को “मल्लू हिंदू ऑफिसर्स” नामक एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाने के आरोप में निलंबित किया गया है। यह ग्रुप सरकारी अधिकारियों के लिए एक धर्म-आधारित प्लेटफार्म था, जिसमें अधिकारियों ने अपनी धर्मनिरपेक्ष जिम्मेदारियों को नज़रअंदाज करते हुए, एक समुदाय विशेष के आधार पर बातचीत की थी। के गोपालकृष्णन ने यह ग्रुप कथित तौर पर एक सामाजिक और सांस्कृतिक पहल के रूप में बनाया था, लेकिन यह कदम सरकारी सेवा के नैतिक और पेशेवर मानकों के खिलाफ था।

सरकार ने इसे गंभीर अनुशासनहीनता मानते हुए निलंबित कर दिया। अधिकारियों का कहना है कि एक धर्म आधारित व्हाट्सएप ग्रुप बनाना सरकारी अधिकारियों के लिए अनुशासनहीनता और समाज में असंतोष उत्पन्न करने वाला कार्य था, जो सार्वजनिक सेवा के लिए उचित नहीं था।
एन. प्रशांत का निलंबन
वहीं, एन. प्रशांत को निलंबित करने का कारण था कि उन्होंने एक वरिष्ठ अधिकारी पर गंभीर आरोप लगाए थे और उनकी आलोचना की थी। इस आलोचना के बाद प्रशांत ने अपने आंतरिक अधिकारियों के साथ कड़ी बहस और विवाद भी किया। प्रशांत ने एक रिपोर्ट के दौरान, कृषि विभाग के कार्यों और संचालन में सुधार की दिशा में वरिष्ठ अधिकारियों पर तीखी टिप्पणियां की थीं। इसको लेकर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई।
मुख्य सचिव की रिपोर्ट पर हुई कार्रवाई
इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई मुख्य सचिव सारदा मुरलीधरन की रिपोर्ट के आधार पर की गई, जिसमें उनके कार्यों और व्यवहार को अनुशासनहीन पाया गया। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने रिपोर्ट के बाद दोनों अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए उन्हें निलंबित करने का आदेश दिया।

“Collector Bro” के नाम से चर्चित अधिकारी
के गोपालकृष्णन को “Collector Bro” के नाम से भी जाना जाता था, जो उनके कार्यों और सार्वजनिक पहल के कारण एक पहचान बन गई थी। हालांकि, अब यह विवादास्पद कार्रवाई उनकी छवि पर सवाल उठा रही है।
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निलंबन का असर और आगे की कार्रवाई
यह मामला केरल प्रशासन में चर्चा का विषय बन गया है, और यह सवाल उठाता है कि क्या सरकारी अधिकारियों को उनके व्यक्तिगत या सामूहिक विचारों के लिए दंडित किया जा सकता है। अब देखना यह होगा कि क्या इन निलंबन आदेशों के खिलाफ अधिकारी अपील करते हैं या नहीं और क्या उन्हें फिर से सेवा में बहाल किया जाएगा।