प्रयागराज, 21 जनवरी: महाकुंभ 2025 के पावन अवसर पर कई श्रद्धालु संसारिक मोह-माया त्यागकर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का संकल्प ले रहे हैं। इसी क्रम में दिल्ली की ममता वशिष्ठ ने भी अपने गृहस्थ जीवन को अलविदा कहकर संन्यास धारण करने का निर्णय लिया है। महाकुंभ में किन्नर अखाड़े के शिविर में विधिवत पिंडदान और दीक्षा ग्रहण करने के बाद ममता को महामंडलेश्वर का दर्जा दिया गया।
गृहस्थ जीवन का त्याग
ममता वशिष्ठ ने दो महीने पहले दिल्ली के संदीप वशिष्ठ से विवाह किया था। विवाह के बाद उनका जीवन सामान्य रूप से चल रहा था, लेकिन महाकुंभ के दौरान उन्होंने सांसारिक जीवन से विरक्ति की राह चुनी। ममता का कहना है कि उनका झुकाव हमेशा से ही सनातन धर्म और आध्यात्मिकता की ओर रहा है। उन्होंने इस मार्ग पर चलने का निर्णय अपने पति और परिवार की सहमति से लिया।
किन्नर अखाड़े में पिंडदान और दीक्षा
ममता ने प्रयागराज स्थित किन्नर अखाड़े के शिविर में अपने और अपने परिवार का पिंडदान किया। यह विधि संन्यास के मार्ग की पहली सीढ़ी मानी जाती है। पिंडदान के बाद किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने उन्हें विधिवत दीक्षा प्रदान की और अखाड़े का महामंडलेश्वर घोषित किया।

महामंडलेश्वर की जिम्मेदारी
डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने ममता की आस्था और सनातन धर्म के प्रति समर्पण को देखते हुए उन्हें महामंडलेश्वर की पदवी प्रदान की। दीक्षा के बाद ममता ने कहा, “मेरा उद्देश्य धर्म का प्रचार-प्रसार और मानवता की सेवा करना है। मैं संन्यास के मार्ग पर चलकर समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।”
महाकुंभ में किन्नर अखाड़े की विशेष भूमिका
महाकुंभ 2025 में किन्नर अखाड़ा अपनी विशेष पहचान और भूमिका के साथ मौजूद है। इस बार किन्नर और महिला संतों के लिए पिंडदान के बाद मुंडन अनिवार्य नहीं किया गया, जिससे कई संतों ने इस प्रक्रिया में भाग लिया। ममता के महामंडलेश्वर बनने को अखाड़े ने धर्म और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में एक नई शुरुआत बताया।

परिवार का मिला समर्थन
ममता के इस निर्णय में उनके पति संदीप वशिष्ठ और उनकी सास ने पूरा समर्थन दिया। उनका कहना है कि ममता का यह कदम प्रेरणादायक है और उनके इस निर्णय पर उन्हें गर्व है।
सनातन धर्म और मानवता की सेवा का संकल्प
महामंडलेश्वर ममता वशिष्ठ अब अपनी नई भूमिका में धर्म और मानव कल्याण के लिए कार्य करेंगी। महाकुंभ में उनका संन्यास और दीक्षा ग्रहण करना न केवल एक व्यक्तिगत निर्णय है, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणा भी है।
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महाकुंभ का यह पवित्र अवसर न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह आत्मिक उत्थान और नई शुरुआत के लिए भी विशेष माना जाता है। ममता की यह यात्रा एक नई कहानी लिखने जा रही है।