बेंगलुरु – कर्नाटक की राजनीति में एक बार फिर दलित मुख्यमंत्री की मांग ज़ोर पकड़ रही है। राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री केएच मुनियप्पा ने बयान दिया है कि “समय आने पर दलित समुदाय से किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का मौका मिलना चाहिए।” इस मांग को सहकारिता मंत्री केएन राजन्ना ने भी समर्थन दिया है, जिससे कांग्रेस के भीतर चल रही चर्चाओं को और बल मिला है।
मुनियप्पा, जो स्वयं दलित समुदाय से आते हैं और फिलहाल राज्य के खाद्य, नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों के मंत्री हैं, ने कहा कि अभी यह उचित समय नहीं है इस विषय पर चर्चा करने का, लेकिन भविष्य में जब नेतृत्व परिवर्तन का समय आएगा, तब दलितों को नेतृत्व देने पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
राज्य की राजनीति में बदलाव की अटकलें
राजनीतिक हलकों में इस साल के अंत तक मुख्यमंत्री पद को लेकर बदलाव की अटकलें लगाई जा रही हैं। सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच एक ‘पावर शेयरिंग एग्रीमेंट’ हुआ था, जिसके तहत एक निश्चित समय बाद नेतृत्व परिवर्तन की संभावना बनी हुई है। इसके अलावा, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी बदलाव की चर्चाएं ज़ोरों पर हैं, क्योंकि डीके शिवकुमार इस पद पर काफी समय से बने हुए हैं।

केएन राजन्ना ने मुनियप्पा की बात का समर्थन करते हुए कहा, “ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए? लोकतंत्र में हर किसी को अपनी आकांक्षा रखने का अधिकार है। अंततः निर्णय हाईकमान को लेना है, लेकिन मैं हर उस व्यक्ति के साथ हूं जो मुख्यमंत्री या राष्ट्रपति बनना चाहता है।”
पार्टी में पहले भी उठ चुकी है मांग
यह पहली बार नहीं है जब दलित मुख्यमंत्री की मांग कांग्रेस के भीतर उठी हो। इससे पहले वरिष्ठ नेता जी. परमेश्वर और एचसी महादेवप्पा ने भी इस विषय पर आवाज़ उठाई थी। जी. परमेश्वर फिलहाल सिद्धारमैया सरकार में मंत्री हैं, और पूर्व में उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।
मुनियप्पा ने याद दिलाया कि जब 2004 में धरम सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे को नेतृत्व देने की मांग की थी। इसी तरह 2013 में सिद्धारमैया के मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने जी. परमेश्वर को उपमुख्यमंत्री बनाने की सिफारिश की थी, भले ही वह चुनाव हार चुके थे।
“फैसला हाईकमान को लेना है” – मुनियप्पा
मुनियप्पा ने दोहराया कि, “हम अपनी मांग जरूर रख सकते हैं, लेकिन अंतिम फैसला पार्टी का हाईकमान ही लेगा। जब समय आएगा, हम उसका पालन करेंगे। दलित समुदाय की केवल यही अपील है कि उन्हें नेतृत्व का अवसर दिया जाए।”
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कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाओं के बीच यह बयान राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। दलित मुख्यमंत्री की मांग को सार्वजनिक मंच पर रखने से एक ओर जहां कांग्रेस के सामाजिक समीकरणों पर असर पड़ेगा, वहीं यह आने वाले महीनों में राज्य की सियासी दिशा तय करने वाला मुद्दा भी बन सकता है।