Homeराजनितिबिहार विधानसभा चुनाव: युवाओं बनाम बुजुर्गों की जंग, टिकट बंटवारे पर सस्पेंस

बिहार विधानसभा चुनाव: युवाओं बनाम बुजुर्गों की जंग, टिकट बंटवारे पर सस्पेंस

बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा सितंबर के अंत तक होने की संभावना है। चुनाव आयोग की तैयारियां तेज़ हैं और अक्टूबर-नवंबर में मतदान की संभावनाओं के बीच राजनीतिक दलों में टिकट बंटवारे को लेकर हलचल मच गई है। इस बार का चुनाव युवा बनाम बुजुर्ग नेताओं की जंग बनता दिख रहा है।

राजनीतिक समीकरण बताते हैं कि 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में वर्तमान में 68 विधायक 65 वर्ष से ऊपर के हैं, जिनमें से 31 की उम्र 70 पार है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार दलों के सामने चुनौती होगी कि वे अनुभवी नेताओं को दोबारा मौका दें या फिर युवाओं पर दांव लगाएं। खासकर तब जब तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और प्रशांत किशोर जैसे युवा चेहरे तेजी से अपनी पैठ बना रहे हैं।

‘70 पार’ का फॉर्मूला और एनडीए की दुविधा

भाजपा और जदयू के लिए सबसे बड़ी चुनौती है ’70 पार’ का फॉर्मूला। अगर इसे लागू किया गया तो एनडीए के 19 मौजूदा विधायकों का टिकट कट सकता है। जदयू के बिजेंद्र प्रसाद यादव (79), हरि नारायण सिंह (80) और पन्नालाल पटेल (77) जैसे दिग्गज नेता प्रभावित हो सकते हैं। भाजपा में नंदकिशोर यादव और अमरेंद्र प्रताप सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं की स्थिति भी चुनौतीपूर्ण हो सकती है।

राजद के 8, कांग्रेस के 3 और भाकपा के 1 विधायक भी 70 से अधिक उम्र के हैं। भाजपा ने पहले भी राष्ट्रीय राजनीति में लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में भेजकर 75 साल की सीमा लागू की थी। हालांकि अब इस नियम को नरम माना जा रहा है, लेकिन युवा नेताओं को जगह देने का दबाव लगातार बढ़ रहा है।

बिहार की राजनीति में वंशवाद एक अहम मुद्दा बना हुआ है। 65 से ऊपर के कई विधायक अपने बेटे-बेटियों को टिकट दिलाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि सीट परिवार के पास ही रहे। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट बताती है कि बिहार में लगभग 27% सांसद और विधायक राजनीतिक परिवारों से आते हैं, जो राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।

राजद में लालू प्रसाद यादव का परिवार लंबे समय से प्रभुत्व बनाए हुए है। वहीं भाजपा में सीपी ठाकुर के पुत्र विवेक ठाकुर और अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत सक्रिय हैं। चिराग पासवान और प्रिंस राज भी अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

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आगामी विधानसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि दल ’70 पार’ नेताओं को मैदान में उतारते हैं या फिर युवाओं को अधिक अवसर देते हैं। टिकट वितरण की यह रणनीति ही चुनावी नतीजों पर गहरा असर डाल सकती है।

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