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AI के ज़रिए बाल ठाकरे की आवाज़: उद्धव गुट का राजनीतिक प्रयोग चर्चा में

महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ उस समय देखने को मिला जब शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) गुट ने पहली बार पार्टी के संस्थापक बाल ठाकरे की आवाज़ को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से पुनर्जीवित कर, अपने विरोधियों पर सीधा प्रहार किया। यह तकनीकी प्रयोग नासिक में आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान सामने आया, जहां बाल ठाकरे की AI-जनित आवाज़ में 13 मिनट का भाषण चलाया गया।

इस भाषण की शुरुआत प्रसिद्ध शैली में हुई — “जामलेय माझ्या तमाम हिंदू बांधवणु, बाघिनिनो आणि मतनो” — जिससे वहां मौजूद शिवसैनिकों में उत्साह की लहर दौड़ गई। भाषण में बीजेपी और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली मौजूदा शिवसेना पर तीखे प्रहार किए गए। इसे शिवसेना (UBT) की ओर से एक रणनीतिक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, जो आगामी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनावों और भविष्य की रैलियों में दोहराया जा सकता है।

शिवसेना (UBT) के अनुसार, AI का उपयोग करके न केवल बाल ठाकरे की आवाज़ को हूबहू दोहराया गया, बल्कि उनके विशिष्ट हाव-भाव, लहजे और भाषण की शैली को भी बारीकी से शामिल किया गया। पार्टी का दावा है कि अगर बाल ठाकरे आज जीवित होते, तो वे वर्तमान परिस्थितियों में यही कहते।

हालांकि, इस तकनीकी पहल को लेकर राजनीतिक गलियारों में तीखी प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने इस कदम को “बचकाना और शर्मनाक” करार दिया। उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, “जब कोई आपकी असली आवाज़ नहीं सुन रहा हो, तो केवल उद्धव गुट जैसे संगठन ही बालासाहेब की आवाज़ में अपनी बात रखने की कोशिश करते हैं।”

बावनकुले ने शिवसेना (UBT) की उन नीतियों और कार्यों की एक सूची भी साझा की, जो उनके अनुसार बाल ठाकरे की मूल विचारधारा के खिलाफ हैं। इसमें टीपू सुल्तान के नाम पर बगीचों का नामकरण, कांग्रेस के साथ गठबंधन, राम मंदिर मुद्दे पर नरमी और वक्फ बोर्ड से संबंधित फैसलों को शामिल किया गया।

यह विवाद ऐसे समय में उभरा है जब शिवसेना (UBT), कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी (MVA) के बैनर तले आगामी चुनावों की तैयारी कर रही है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में MVA को महज़ 46 सीटें मिली थीं, जिसमें से उद्धव गुट को केवल 20 सीटें ही प्राप्त हुई थीं। वहीं, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना को 57 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।

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AI का यह प्रयोग जहां एक ओर तकनीक और राजनीति के नए मेल का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर इससे जुड़े नैतिक और वैचारिक सवाल भी खड़े कर रहा है। क्या बाल ठाकरे की विरासत को इस तरह तकनीक से जोड़ना सही है? क्या यह चुनावी हथकंडा असरदार होगा या विरोधियों के हाथ एक और मुद्दा दे देगा? आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता इस नए प्रयोग को कैसे लेती है।

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