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By-Election: अब चुनावी रंग में आया बुदनी, जानिए क्या है मतदाताओं का मूड

बुदनी (सीहोर): मध्य प्रदेश के सीहोर जिले की प्रतिष्ठित विधानसभा सीट बुदनी में चुनावी माहौल पूरी तरह से गरमाया हुआ है। इस सीट की अहमियत और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए, यह उपचुनाव प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। बुदनी सीट पर भाजपा का दो दशक पुराना कब्जा रहा है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 1990 में इस सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा में प्रवेश किया था, और उसके बाद से लगातार यहां से चुनाव जीतते आए हैं। अब शिवराज सिंह चौहान इस चुनाव में सीधे मुकाबले में नहीं हैं, लेकिन उनका प्रभाव इस क्षेत्र में अब भी मजबूत है।

इस बार भाजपा ने पूर्व सांसद रमाकांत भार्गव को टिकट दिया है, जिनका सामना कांग्रेस के राजकुमार पटेल से होगा, जो 1993 में इस सीट से विधायक रह चुके हैं। इसके अलावा, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह भी इस चुनावी मैदान में सक्रिय हैं, और उन्होंने गांव-गांव जाकर भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश की है। कांग्रेस बुदनी में क्षेत्रीय पिछड़ेपन और विकास के मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है, जबकि भाजपा अपनी नीतियों और कार्यों को सामने रखकर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रही है।

भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर

बुदनी क्षेत्र में चुनावी माहौल पूरी तरह से भाजपा और कांग्रेस के बीच केंद्रित है। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और शिवराज सिंह चौहान दोनों ही चुनावी प्रचार में पूरी तरह से सक्रिय हैं। वहीं, कांग्रेस ने अपने प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को मैदान में उतार रखा है, जिन्होंने इस क्षेत्र में लगातार पार्टी संगठन को सक्रिय रखा है।

इसी बीच, कुछ असंतुष्ट नेताओं ने भी इस चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। आम आदमी पार्टी से आरती गजेंद्र शर्मा को टिकट नहीं मिला, तो वे निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर गईं। वहीं, भाजपा से टिकट न मिलने के बाद आरएसएस के पूर्व पदाधिकारी दुर्गाप्रसाद सेन और कांग्रेस से टिकट न मिलने पर अर्जुन आर्य ने भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी रेस में भाग लिया है।

बुदनी By-Election के मतदाताओं का मूड

बुदनी में चुनावी चर्चा का लब्बोलुआब यह है कि लोग आज भी अपनी समस्याओं के समाधान की उम्मीद लगाए बैठे हैं, लेकिन वर्तमान नेताओं से वे संतुष्ट नहीं हैं। स्थानीय निवासी आनंद सिंह (65 वर्ष) बताते हैं कि क्षेत्र में बरसों पुरानी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। उनके अनुसार, “चुनाव के समय उम्मीदें जागती हैं, लेकिन चुनाव के बाद सब अपने-अपने काम में लग जाते हैं और वही हाल फिर से हो जाता है।”

बुदनी विधानसभा क्षेत्र के कुछ युवाओं का कहना है कि यहां के लोग अब भी रोजगार के लिए बाहर जाने पर मजबूर हैं। प्रशांत चौरसिया जैसे युवाओं का मानना है कि क्षेत्र में औद्योगिकीकरण के अवसर बहुत कम हैं, और जो कुछ फैक्टरियां हैं, उनमें बाहरी लोग ही रोजगार पा रहे हैं।

प्रमुख मुद्दे

  1. विकास का मुद्दा: कांग्रेस ने शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में बुदनी के विकास को लेकर कई सवाल उठाए हैं। पार्टी का कहना है कि भाजपा सरकार ने शाहगंज तक तो कुछ विकास किया, लेकिन बुदनी के बाकी हिस्सों में, जैसे रेहटी और भैरुंदा, कोई ठोस विकास नहीं हुआ।
  2. रेलवे लाइन का मुद्दा: इंदौर-जबलपुर रेलवे लाइन का प्रस्तावित निर्माण भी एक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि बुदनी क्षेत्र की उपेक्षा के कारण अब तक इसका काम शुरू नहीं हो सका है। कांग्रेस इस पर भाजपा सरकार को घेर रही है कि इस महत्वपूर्ण परियोजना के लिए बजट जारी नहीं किया गया।
  3. नया नेतृत्व: भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में इस बार कार्यकर्ताओं के बीच नेतृत्व को लेकर कुछ असंतोष है। भाजपा में भी पुराने कार्यकर्ता नए नेतृत्व को मौका देने की बात कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस में भी नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा चल रही है।

निष्कर्ष

बुदनी विधानसभा उपचुनाव के नतीजे केवल इस क्षेत्र के विकास को ही नहीं, बल्कि प्रदेश की राजनीतिक दिशा को भी प्रभावित कर सकते हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल इस चुनाव में अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, जबकि असंतुष्ट नेताओं का मैदान में उतरना इस चुनावी मुकाबले को और भी रोचक बना रहा है। मतदाता अब देखेंगे कि क्या भाजपा अपना गढ़ बनाए रख पाती है, या फिर कांग्रेस इस मजबूत bastion में सेंध लगाने में सफल होती है।

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अब, यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में बुदनी के लोग किसे अपना नेतृत्व प्रदान करते हैं और किसकी नीतियां उन्हें सर्वश्रेष्ठ समाधान के रूप में नजर आती हैं।

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