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MUMBAI NEWS:-अडानी पावर के खिलाफ याचिका खारिज हाई कोर्ट ने 50 हजार का जुर्माना भी लगाया

मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने अडानी पावर के खिलाफ दायर की गई याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगा दिया है। याचिका में अडानी पावर को महाराष्ट्र सरकार से मिला 6,600 मेगावाट का रिन्यूएबल और थर्मल पावर सप्लाई का कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने की मांग की गई थी। अदालत ने इस याचिका को निराधार और बिना किसी ठोस प्रमाण के बताया, साथ ही याचिकाकर्ता के खिलाफ यह जुर्माना भी लगाया।

कोर्ट ने बताया याचिका ‘निराधार’

बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस अमित बोरकर की बेंच ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता टेंडर प्रक्रिया का हिस्सा नहीं थे और उनके पास भ्रष्टाचार या गलत तरीके से टेंडर दिए जाने का कोई प्रमाण नहीं था। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने जो आरोप लगाए थे, वे अस्पष्ट और बिना किसी ठोस आधार के थे।

कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि याचिकाकर्ता ने महाराष्ट्र सरकार और अडानी पावर के बीच हुए समझौते को लेकर जो आरोप लगाए थे, उनका कोई साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया गया। विशेष रूप से, याचिकाकर्ता ने पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ भी आरोप लगाए थे, लेकिन इसके लिए कोई सहायक सामग्री नहीं दी गई थी।

याचिकाकर्ता ने दावे किए थे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन

याचिकाकर्ता श्रीराज नागेश्वर आप्पुरवार ने अपनी याचिका में दावा किया था कि यह कॉन्ट्रैक्ट संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उनका आरोप था कि अडानी पावर को यह कॉन्ट्रैक्ट देने से नागरिकों को उचित दर पर बिजली नहीं मिल पा रही है।

हालांकि, कोर्ट ने इस दावे को भी खारिज कर दिया और कहा कि याचिकाकर्ता ने बिना किसी प्रमाण के यह दावे किए हैं। अदालत ने यह भी कहा कि उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के एक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के दस्तावेज का हवाला दिया था, लेकिन वह दस्तावेज़ भी आधिकारिक हलफनामे के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया और इसकी वास्तविक प्रकृति स्पष्ट नहीं की जा सकी।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर लगाया जुर्माना

बॉम्बे हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया और आदेश दिया कि यह राशि महाराष्ट्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास छह सप्ताह के भीतर जमा कराई जाए। अदालत ने इस प्रकार की निराधार याचिकाओं को बढ़ावा न देने की बात करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी जनहित याचिकाओं की सटीकता और प्रमाणिकता को महत्वपूर्ण माना है।

सुप्रीम कोर्ट के दृष्टिकोण का हवाला

कोर्ट ने अपने फैसले में जनहित याचिकाओं (PIL) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दृष्टिकोण का भी हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि जहां एक ओर सार्वजनिक हित से जुड़ी वास्तविक याचिकाओं पर विचार करना चाहिए, वहीं इस तरह की तुच्छ और निराधार याचिकाओं से बचने की भी आवश्यकता है।

बॉम्बे हाई कोर्ट की इस फैसले से स्पष्ट होता है कि कोर्ट बिना प्रमाण और तथ्यों के किसी भी याचिका पर विचार नहीं करता और उसे खारिज कर देता है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह याचिका सिर्फ समय और संसाधनों की बर्बादी थी, क्योंकि इसमें कोई ठोस तथ्य या प्रमाण नहीं प्रस्तुत किया गया था।

निष्कर्ष

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बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला अडानी पावर के खिलाफ दायर की गई याचिका को लेकर महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह साबित करता है कि अदालत किसी भी मामले पर विचार करते वक्त केवल प्रमाण और तथ्यों के आधार पर निर्णय लेती है। याचिकाकर्ता को अब 50,000 रुपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया गया है, जो एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि न्यायालय का समय और संसाधन केवल वास्तविक और प्रमाणित मामलों पर खर्च किया जाना चाहिए।

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