Homeशिक्षा विशेषरीवा राज्य का ऐतिहासिक परिदृश्य: एक विस्तृत अध्ययन

रीवा राज्य का ऐतिहासिक परिदृश्य: एक विस्तृत अध्ययन

रीवा राज्य, जिसे रीवा के नाम से भी जाना जाता है, मध्य भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य था जिसकी राजधानी रीवा शहर के आसपास स्थित थी। ऐतिहासिक रूप से, यह राज्य बघेलखंड एजेंसी की सबसे बड़ी रियासतों में से एक था और मध्य भारत एजेंसी में दूसरी सबसे बड़ी रियासत के रूप में जाना जाता था। 1901 में इसका औसत राजस्व 2.9 मिलियन रुपये था, जो इसे मध्य भारत की तीसरी सबसे धनी रियासत बनाता था।

रीवा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

रीवा राज्य की स्थापना किंवदंती के अनुसार 1140 ई. के आसपास हुई थी। 5 अक्टूबर 1812 को यह ब्रिटिश संरक्षित राज्य बन गया। राज्य ने 1 अप्रैल 1875 से 15 अक्टूबर 1895 तक ब्रिटिश भारत के प्रत्यक्ष औपनिवेशिक प्रशासन के अधीन रहा। 1933 में बघेलखंड एजेंसी की समाप्ति के बाद इसे इंदौर रेजीडेंसी के अधिकार में रखा गया।

शासन के दौरान, रीवा के शासक राजा व्याघ्र देव ने बांधवगढ़ से शासन किया, जो गुजराती योद्धा राजा वीर धवल के वंशज थे। 1617 में, महाराजा विक्रमादित्य सिंह ने राजधानी को रीवा में स्थानांतरित कर दिया। रीवा राज्य का अंतिम शासक महाराजा मार्तंड सिंह था, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत संघ में प्रवेश किया।

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ऐतिहासिक घटनाएँ और प्रमुख शासक

रीवा राज्य की ऐतिहासिकता केवल उसके शासकों के कार्यकाल तक सीमित नहीं है। अकबर के 10 साल की उम्र में रीवा में शरण लेने के किस्से ने भी इतिहास को एक नया मोड़ दिया। महाराजा रामचंद्र सिंह के दरबार में महान तानसेन और बीरबल जैसे संगीत और प्रशासन के दिग्गजों ने अपनी छाप छोड़ी।

1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान, ठाकुर रणमत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। उन्होंने 2,000 विद्रोहियों के साथ ब्रिटिश रेजिडेंट पॉलिटिकल एजेंट विलोबी ओसबोर्न के बंगले को घेर लिया। हालांकि, अंततः महाराजा ने ब्रिटिश पक्ष को अपना समर्थन दिया और रणमत सिंह को पकड़वा दिया, जिसे फांसी पर चढ़ा दिया गया।

सामाजिक और प्रशासनिक सुधार

महाराजा गुलाब सिंह के शासनकाल के दौरान, रीवा राज्य ने हिंदी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया और पहली उत्तरदायी सरकार की स्थापना की। राजा वेंकट रमन सिंह (1880-1918) के दौरान राज्य में कई प्रशासनिक सुधार किए गए। इस समय, रीवा शहर में एक हाई स्कूल, एक “मॉडल जेल,” और दो अस्पताल स्थापित किए गए।

विघटन और स्वतंत्रता के बाद

1812 में ब्रिटिश शासन के अधीन आने के बाद, रीवा राज्य 1947 तक ब्रिटिश राज के अंतर्गत एक रियासत बना रहा। स्वतंत्रता के बाद, महाराजा मार्तंड सिंह देव बहादुर के नेतृत्व में राज्य ने भारतीय संघ में शामिल होने की प्रक्रिया पूरी की। वर्तमान में, पुष्पराज सिंह (जन्म 1960) राज्य के प्रमुख हैं।

रीवा राज्य का ऐतिहासिक परिदृश्य न केवल इसकी शासकीय व्यवस्था की गहराई को दर्शाता है बल्कि इसने भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं और शासकों की भूमिका को भी उजागर किया है।

ब्रिटिश शासित रीवा राज्य

रीवा राज्य ने 5 अक्टूबर 1812 को ब्रिटिश संरक्षण प्राप्त किया। इस समय, राज्य ने ब्रिटिश प्रशासन के अधीन एक संरक्षित राज्य का दर्जा प्राप्त किया। 1875 से 1895 तक, रीवा राज्य ब्रिटिश भारत के प्रत्यक्ष औपनिवेशिक प्रशासन के अधीन रहा। 1933 में बघेलखंड एजेंसी को भंग कर दिया गया और रीवा को इंदौर रेजीडेंसी के अधिकार में रख दिया गया।

रीवा के शासक

रीवा राज्य की शासक वंशावली का इतिहास कई महत्वपूर्ण शासकों से भरा हुआ है। इन शासकों में से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:

  1. महाराजा व्याघ्र देव: राजा व्याघ्र देव ने रीवा राज्य की स्थापना की और इसे एक शक्तिशाली केंद्र बनाया।
  2. महाराजा विक्रमादित्य सिंह: 1617 में उन्होंने रीवा को अपनी राजधानी बनाया, जो राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र बन गया।
  3. महाराजा गुलाब सिंह: उनके शासनकाल में, रीवा ने हिंदी को अपनी राष्ट्रीय भाषा घोषित किया और एक उत्तरदायी सरकार की स्थापना की।
  4. महाराजा मार्तंड सिंह: उनका शासन 1923 से 1946 तक रहा और उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के बाद भारत संघ में शामिल होने की प्रक्रिया को पूरा किया।

रीवा राज्य का सांस्कृतिक महत्व

रीवा राज्य का सांस्कृतिक महत्व उसके ऐतिहासिक निर्माणों, स्थापत्य कला, और सांस्कृतिक परंपराओं में निहित है। राज्य में कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल और मंदिर हैं, जो इसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं। रीवा के किले, महलों, और ऐतिहासिक संरचनाओं ने राज्य की समृद्धि और सामरिक महत्व को उजागर किया है।

1857 का विद्रोह और रीवा

1857 के विद्रोह के दौरान, रीवा राज्य की भूमिका महत्वपूर्ण थी। ठाकुर रणमत सिंह, जो एक प्रमुख विद्रोही नेता थे, ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सक्रिय रूप से संघर्ष किया। उन्होंने 2,000 विद्रोहियों की सेना का नेतृत्व किया और ब्रिटिश रेजीडेंट पॉलिटिकल एजेंट विलोबी ओसबोर्न के बंगले को घेर लिया। हालांकि अंततः ब्रिटिश शासन ने विद्रोह को दबा दिया, इस संघर्ष ने रीवा राज्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ा।

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