Homeप्रदेशसिंगरौली में ट्रामा सेंटर के नाम पर करोड़ों की साजिश...?

सिंगरौली में ट्रामा सेंटर के नाम पर करोड़ों की साजिश…?

जिला अस्पताल सिंगरौली के ट्रामा सेंटर में मरीजों की तकलीफें कम होने के बजाय और बढ़ गई हैं। इस बार तकलीफ बीमारी नहीं, बल्कि प्रशासन की चुप्पी और अफसरशाही का कथित खेल है। सवाल उठ रहा है — क्या मरीजों के स्वास्थ्य और गरिमा से जानबूझकर खिलवाड़ किया गया…?

बजट आया, ऑर्डर नहीं हुआ… क्यों?

मार्च 2025 में एनसीएल (नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) की सीएसआर मद से जिला अस्पताल को 40 लाख रुपये की राशि दी गई थी। यह राशि 23 एयर कंडीशनर और अन्य जरूरी उपकरणों की खरीदी के लिए थी। लेकिन हैरानी की बात यह है कि ट्रामा सेंटर में एक भी एसी अब तक नहीं पहुंचा।

इस देरी की वजह बताई जा रही है — ऑर्डर ही नहीं किया गया।
जवाबदेही किसकी थी?
सिविल सर्जन डॉ. देवेंद्र सिंह और परचेस क्लर्क राजेश पड़वार। पर आरोप है कि दोनों ने जैम पोर्टल से ऑर्डर देना टाल दिया — नतीजतन, पूरा बजट लैप्स हो गया।

मरीजों के लिए ‘गर्मी से जलालत’

बर्न वार्ड, मेल-फीमेल ट्रामा यूनिट्स में गंभीर रूप से झुलसे मरीज गर्मी में बेहाल हैं। वहां तैनात स्वास्थ्यकर्मी भी दमघोंटू हालात में ड्यूटी कर रहे हैं। ऐसे में जनता का सवाल है — जब पैसा था, तो मरीजों को राहत क्यों नहीं मिली?

कुछ कर्मचारी दबी जुबान में “कमीशन के इंतजार” की बात कहते हैं। यानी जानबूझकर ऑर्डर रोका गया ताकि बाद में ‘अपना आदमी’ लाकर टेंडर दिलाया जा सके

जब सिविल सर्जन बोले – “मुझे जानकारी नहीं…”

सवाल तब और गंभीर हो जाता है जब सिविल सर्जन खुद यह कहें कि उन्हें किसी तरह की जानकारी नहीं है। क्या 40 लाख रुपये की सरकारी मंजूरी भी बिना जानकारी के सिस्टम में इधर-उधर हो जाती है? या फिर यह एक पूर्व-नियोजित रणनीति का हिस्सा था?

ट्रांसपेरेंसी के नाम पर पर्देदारी?

सरकारी दावों के मुताबिक जैम पोर्टल से खरीदी प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी होती है। लेकिन जब जिम्मेदार अफसर ही जैम प्रक्रिया से भागने लगें, तो ये सवाल उठता है कि क्या जैम सिर्फ दिखावे की पारदर्शिता है, और असली खेल पर्दे के पीछे चलता है?

क्यों नहीं हुआ आदेश?
मार्च में बजट लैप्स होने से पहले क्या सिविल सर्जन और क्लर्क को समय रहते पता नहीं था? क्या जानबूझकर लापरवाही बरती गई? या कोई बड़ा घोटाला तैयार किया जा रहा था?

जनता की मांग – जवाब दो, जवाब दो!

सिंगरौली की जनता अब इस मामले में स्वतंत्र जांच की मांग कर रही है। सवाल सिर्फ एसी का नहीं है — यह उन मरीजों की जान का सवाल है, जो गर्मी में तड़पते हुए ट्रामा सेंटर में दाखिल हैं। यह उन स्वास्थ्यकर्मियों का सवाल है जो कर्तव्य निभा रहे हैं, लेकिन उन्हें बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिल रहीं।

अब क्या करेगा प्रशासन?

जनता की निगाहें अब जिला कलेक्टर और स्वास्थ्य विभाग पर हैं। क्या कार्रवाई होगी? क्या दोषियों को बचा लिया जाएगा? या इस बार लापरवाही का हिसाब लिया जाएगा?

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क्योंकि इस बार मामला सिर्फ ‘बजट लैप्स’ का नहीं है, यह एक व्यवस्था के ‘मानवता लैप्स’ की कहानी बन गया है।

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