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सिंगरौली में सड़कें बनीं परेशानी की जड़, सिंगरौली से लेकर राजधानी तक हर तरफ गड्ढों का साम्राज्य

मध्यप्रदेश में जहां एक ओर सरकार विकास के दावे कर रही है, वहीं दूसरी ओर ज़मीन पर हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। राजधानी भोपाल से लेकर ऊर्जा और आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले सिंगरौली तक, सड़कों की हालत इतनी बदतर हो चुकी है कि उन्हें सड़क कहना भी अतिशयोक्ति लगती है।

हर तरफ गड्ढे ही गड्ढे नजर आते हैं, जिनमें गाड़ियां नहीं, आम जनता की उम्मीदें और भरोसा डूब रहा है। सड़कें अब सफर का साधन नहीं, मुसीबत का सबब बन चुकी हैं।

ऊर्जा राजधानी की असलियत, गड्ढों में गढ़ा विकास

सिंगरौली को मध्यप्रदेश की ऊर्जा राजधानी कहा जाता है। यहां देश की कई बड़ी पावर कंपनियां स्थापित हैं – एनटीपीसी, रिलायंस, हिंडाल्को जैसे उद्योग यहां मौजूद हैं। यह जिला राज्य को सबसे ज्यादा टैक्स देता है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि उसी शहर में बुनियादी सुविधाएं नदारद हैं

शहर में न सड़कों की मरम्मत है, न समय पर बिजली आपूर्ति, और न ही ठोस नगरीय प्रबंधन। हालत यह है कि नगर निगम क्षेत्र में हर दिन किसी न किसी जगह खुदाई चलती रहती है — कभी पाइपलाइन के लिए, कभी सीवरेज तो कभी गैस कनेक्शन के नाम पर।

इन अधूरे कार्यों की वजह से पूरी की पूरी सड़कें उखड़ जाती हैं और उन्हें फिर से ठीक करने की कोई जवाबदेही नहीं दिखाई देती।

विकास के नाम पर बर्बादी का खेल

मुख्यमंत्री खुद सिंगरौली आए थे और शहर की सड़कों को दुरुस्त करने के बड़े वादे किए थे। लेकिन हकीकत ये है कि खुद शहर की मुख्य सड़कों की हालत गांवों से भी खराब है।

नगर निगम सिंगरौली द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर भी सवाल उठने लगे हैं। करोड़ों रुपये नाली और सड़क के नाम पर खर्च कर दिए जाते हैं, लेकिन हल्की सी बारिश होते ही नालियां जाम हो जाती हैं, पुलिया धंस जाती है और सड़कें बह जाती हैं।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह सिर्फ भ्रष्टाचार का खेल है — सड़क निर्माण में ना सही सामग्री डाली जाती है, न समय पर निरीक्षण होता है।

भोपाल से लेकर गांवों तक – एक जैसी बदहाली

यह समस्या सिर्फ सिंगरौली तक सीमित नहीं है। राजधानी भोपाल की सड़कों का भी यही हाल है। स्मार्ट सिटी के दावे करने वाले इस शहर में स्मार्ट सड़कों की जगह जगह जगह ‘स्मार्ट गड्ढे’ नजर आते हैं।

भोपाल के एमपी नगर, कोलार रोड, भेल क्षेत्र और पुराने शहर के इलाके बरसात में दलदल बन जाते हैं। यही नहीं, ग्वालियर, रीवा, जबलपुर, खंडवा, छिंदवाड़ा, बालाघाट जैसे जिलों से भी लगातार गड्ढों की खबरें सामने आती रही हैं।

जनता त्रस्त, जनप्रतिनिधि मस्त

जनता रोजाना टूटी सड़कों से होकर गुजरती है, वाहन दुर्घटनाओं का शिकार होती है, लेकिन जनप्रतिनिधियों के लिए सब कुछ ‘विकास’ की परिभाषा में फिट बैठता है।

कई जगहों पर लोगों ने सड़कों की खराब हालत को लेकर प्रदर्शन किए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। हाल ही में सिंगरौली में कुछ नागरिकों ने खुद गड्ढों में पौधे लगाकर विरोध दर्ज कराया — उनका सीधा सवाल था कि अगर ये गड्ढे भर नहीं सकते, तो कम से कम ‘हरित क्रांति’ तो की जा सकती है।

सवालों के घेरे में सरकारी तंत्र

  • जब करोड़ों की योजनाएं बनाई जाती हैं, तो निर्माण की गुणवत्ता की जिम्मेदारी किसकी होती है?
  • क्या सड़कें सिर्फ फोटो खिंचवाने और फीता काटने तक सीमित रह गई हैं?
  • जनता के टैक्स का पैसा आखिर बहता कहां है — सड़क पर या भ्रष्टाचार में?

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मध्यप्रदेश में सड़कें अब विकास का नहीं, विफलता का प्रतीक बनती जा रही हैं। सिंगरौली जैसे जिले जहां से राज्य की अर्थव्यवस्था को ताकत मिलती है, वहां की बदहाली यह सवाल उठाती है कि कहीं न कहीं सिस्टम में गंभीर खामियां हैं।

अगर यही हाल रहा तो गड्ढों में गाड़ियां नहीं, सरकार की साख और जवाबदेही भी धंस जाएगी।

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