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खुटार पशु बाजार में अवैध वसूली का खेल: सरकारी सिस्टम की चुप्पी या साज़िश?

सिंगरौली जिले के खुटार स्थित पशु बाजार में इन दिनों कुछ ऐसा घट रहा है, जिसे देखकर न केवल ग्रामीण हैरान हैं बल्कि प्रशासनिक चुप्पी पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय व्यापारियों और पशुपालकों के मुताबिक, बाजार में हर पशु पर ₹700 की वसूली की जा रही है — वह भी बिना किसी वैध सरकारी दस्तावेज़ या नियम के। आश्चर्यजनक बात यह है कि इस वसूली में कुछ ऐसे नाम भी सामने आ रहे हैं, जो सीधे तौर पर सरकारी तंत्र से जुड़े हैं। क्या यह प्रशासन की लापरवाही है, या फिर कोई सोची-समझी मिलीभगत?

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, यह वसूली नगर निगम की आड़ में की जा रही है, जबकि इस पर कोई वैध अनुमति नहीं है। पशुपालकों को जो रसीदें दी जा रही हैं, उनमें न तो कोई सरकारी मुहर है और न ही कोई रजिस्ट्रेशन कोड। सवाल यह है कि अगर यह वसूली कानूनी है, तो फिर यह सब कागज़ों में क्यों नहीं दर्शाया गया?

इस पूरे प्रकरण में सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि दो नाम, मनोज (सरकारी शिक्षक) और राहुल शाह, इस वसूली के केंद्र में बताए जा रहे हैं। मनोज एक गवर्नमेंट स्कूल में अध्यापक हैं, लेकिन अब उन पर आरोप है कि वे या तो खुद इस वसूली में संलिप्त हैं या फिर पर्दे के पीछे से इसे संचालित कर रहे हैं। राहुल शाह का नाम भी इसी तरह से बार-बार सामने आ रहा है। क्या सरकारी पद पर बैठे ये लोग वास्तव में इस गोरखधंधे का हिस्सा हैं?

इस सवाल को और गंभीर बनाता है वह कबूलनामा, जो बाजार में रसीद काटने वाले एक व्यक्ति ने कैमरे पर दिया। उसने दावा किया कि उसे ये वसूली करने का निर्देश नगर निगम के एक अधिकारी ने दिया है और वह हर सप्ताह की रकम उन्हें सौंपता है। यदि यह बात सच है, तो मामला केवल एक स्थानीय घोटाले का नहीं, बल्कि उच्च स्तर तक फैले भ्रष्ट तंत्र का है।

स्थानीय व्यापारियों और ग्रामीणों का कहना है कि पहले भी यह अवैध वसूली सामने आ चुकी है और कुछ समय के लिए बंद भी हुई थी। लेकिन अब, जैसे ही प्रशासन की नजर हटी, यह गोरखधंधा फिर शुरू हो गया। सवाल यह है कि नगर निगम और प्रशासन कब तक आंखें मूंदे बैठे रहेंगे?

नगर निगम कमिश्नर डी.के. शर्मा ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि वसूली की अनुमति केवल नगर क्षेत्र में दी गई थी, ग्रामीण क्षेत्र में नहीं। उन्होंने अवैध वसूली की शिकायत मिलने के बाद ठेका निरस्त करने और जांच के आदेश देने की बात कही। महापौर रानी अग्रवाल ने कहा कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं थी और वे इसकी समीक्षा करेंगी। वहीं नगर निगम अध्यक्ष देवेश पांडे ने कार्रवाई का आश्वासन देते हुए कहा कि यदि वीडियो और साक्ष्य दिए जाएं, तो वह निश्चित ही जांच करवाएंगे।

इस पूरे मामले में अब निगाहें प्रशासन पर टिकी हैं। क्या नगर निगम अपने वादों पर खरा उतरेगा? क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी अन्य फाइलों की तरह धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला जाएगा?

एक और अहम बात — यह वसूली सिर्फ आर्थिक शोषण नहीं है, बल्कि ग्रामीणों की न्याय प्रणाली और विश्वास पर चोट है। अगर अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मामला सिर्फ एक घोटाले की कहानी नहीं, बल्कि आने वाले समय में एक बड़े जन आंदोलन की चिंगारी बन सकता है।

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अब देखने वाली बात यह है कि क्या यह साज़िशन चुप्पी टूटेगी या फिर भ्रष्टाचार की यह दीवार और मजबूत होगी।

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