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बरिगमा की जलभराव सड़क बनी मासूमों के लिए मौत का रास्ता, प्रशासन अब जागने की बात कर रहा है

सीधी, मध्य प्रदेश।
जनपद पंचायत सीधी के ग्राम बरिगमा में बारिश के चलते सड़कें नदी में तब्दील हो चुकी हैं। हालात इतने खराब हैं कि स्कूल जाने वाले मासूम बच्चों की जान पर हर दिन खतरा मंडरा रहा है। सबसे चिंता की बात यह है कि यह समस्या आज की नहीं, बल्कि तीन साल पुरानी है, लेकिन अब तक प्रशासन की नींद नहीं टूटी

गांव के आठ वर्षीय बालक सैश पटेल की बात ने पूरे सिस्टम की पोल खोल दी –

“हम रोज इसी रास्ते से स्कूल जाते हैं, कई बार गिर चुका हूं, मेरी किताबें और कपड़े भीग जाते हैं…”

ऐसे मासूम शब्द उस सड़ियल सिस्टम पर तमाचा हैं, जहां सड़क की जगह तालाब, और प्रशासन की जगह सन्नाटा है।

तीन साल से अधूरी नाली, हर साल डूबता गांव

गांव के ही राजा राम प्रजापति ने बताया कि ग्राम पंचायत ने करीब तीन साल पहले नाली निर्माण का कार्य शुरू किया, लेकिन काम अधूरा छोड़ दिया गया। तब से हर बारिश में हालात ऐसे हो जाते हैं कि पैदल निकलना तो दूर, जान जोखिम में डालकर भी चलना मुश्किल हो जाता है।

“हर साल कोई न कोई हादसा होता है, लेकिन जिम्मेदार लोग आंख मूंदे बैठे हैं।”

वर्षा जलभराव की वजह से ग्रामीणों को चोटें लग चुकी हैं, लेकिन न पंचायत ने सुध ली और न जिला प्रशासन ने।

बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़?

सबसे खौफनाक पहलू ये है कि प्राइमरी और मिडिल स्कूल जाने वाले बच्चे इसी रास्ते से गुजरते हैं। रोज कीचड़, फिसलन और पानी से जूझते हैं। कोई भी बड़ा हादसा हो सकता है, लेकिन न कोई पुलिया बनी, न पक्की सड़क, न वैकल्पिक रास्ता।

प्रशासन की प्रतिक्रिया – “अब पता चला”

जब मीडिया ने इस मुद्दे को उठाया, तब जनपद पंचायत सीधी के अध्यक्ष धर्मेंद्र सिंह परिहार ने कहा:

“अब हमें जानकारी मिली है। वरिष्ठ अधिकारियों की टीम भेजी जाएगी और जल्द समाधान होगा। बच्चों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है।”

सवाल यह है कि तीन साल से शिकायतें हो रही थीं, तब प्रशासन कहां था? क्या बच्चों की जान खतरे में डालने के बाद ही सिस्टम हरकत में आएगा?

उम्मीद बनाम हकीकत

ग्रामीणों को एक बार फिर उम्मीद है कि अब शायद प्रशासन नींद से जागेगा। लेकिन यह सवाल भी उतना ही जरूरी है –
क्या सिर्फ बयान देने से बच्चों को सुरक्षित रास्ता मिल जाएगा?
या फिर यह भी एक और “फॉलोअप के बिना” फाइलों में दबी शिकायत बनकर रह जाएगी?

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बरिगमा का ये मामला सिर्फ एक गांव की समस्या नहीं, बल्कि उस व्यवस्थागत लापरवाही का चेहरा है, जो विकास के वादों के नीचे दबा है। जब तक प्रशासन सिर्फ बयानबाज़ी करता रहेगा और बच्चों को सुरक्षित रास्ता देने की बजाय बहाने देता रहेगा, तब तक हर बारिश में कोई न कोई मासूम इस गड्ढों भरे तंत्र की भेंट चढ़ता रहेगा।

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