निगरी, मध्यप्रदेश। जिले के निवास संकुल अंतर्गत निगरी हाई स्कूल से एक चौंकाने वाली और चिंताजनक घटना सामने आई है। जहां बच्चों को पढ़ाई कराने की बजाय मजदूरी करवाई जा रही है। यह घटना न केवल शिक्षा के मूल उद्देश्य को ध्वस्त करती है, बल्कि बाल अधिकारों का सीधा उल्लंघन भी है।
तालाब से पानी ढोकर बनवाया जा रहा सीमेंट का मसाला
स्कूल में अध्ययनरत छात्रों ने खुलासा किया कि उन्हें तालाब से पानी लाने भेजा गया, जिससे स्कूल परिसर में रेत और सीमेंट का मसाला तैयार किया जा सके। यह कार्य विद्यालय प्राचार्य के निर्देश पर कराए जाने की बात सामने आई है। छात्रों का कहना है कि उन्हें लगातार इस तरह के कार्यों में लगाया जाता है और इससे उनकी पढ़ाई पर गंभीर असर पड़ रहा है।
शिक्षा के मंदिर में हो रहा श्रम शोषण
जब एक छात्र से सवाल किया गया कि उन्हें पानी लाने के लिए क्यों भेजा गया, तो उसने बताया,
“साब बोले थे कि स्कूल का काम है, पढ़ाई के बाद सबको मिलकर मदद करना पड़ेगा।”
लेकिन यह “मदद” अब दैनिक मजदूरी जैसे कार्यों में बदल चुकी है। शिक्षा के नाम पर बच्चों से इस प्रकार का श्रम करवाना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह शिक्षा का अपमान है।
बच्चों में डर का माहौल, उपस्थिति भी घटी
स्थानीय लोगों और अभिभावकों का कहना है कि इस तरह के हालात के कारण बच्चे स्कूल आने से डरने लगे हैं। उन्हें डर है कि पढ़ाई के नाम पर उन्हें फिर से कोई निर्माण कार्य या अन्य मजदूरी का कार्य न सौंप दिया जाए। यही वजह है कि स्कूल में छात्रों की उपस्थिति दिन-ब-दिन घट रही है।यह भी पढ़ें:-
जिम्मेदार अधिकारी चुप, कार्रवाई नहीं
इस पूरे मामले में हैरानी की बात यह है कि शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों की चुप्पी बनी हुई है। शिकायतें किए जाने के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इससे क्षेत्र में यह संदेश जा रहा है कि या तो शासन-प्रशासन आंख मूंदे बैठा है, या फिर ऐसे मामलों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा।

अभिभावकों में रोष, कार्रवाई की मांग
स्थानीय अभिभावकों और सामाजिक संगठनों ने इस कृत्य की कड़ी निंदा करते हुए दोषियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि अगर इस मामले को अनदेखा किया गया, तो यह कुप्रथा बच्चों के भविष्य को निगल जाएगी।
एक अभिभावक ने कहा –
“हमने अपने बच्चों को पढ़ने भेजा है, मजदूरी करने नहीं। स्कूल को मंदिर कहा जाता है, पर यहां तो बच्चों को मजदूर बना दिया गया है।”
बाल श्रम कानून का उल्लंघन
बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह मामला बाल श्रम निषेध कानून के दायरे में आता है और इसके लिए जिम्मेदारों पर आपराधिक कार्रवाई होनी चाहिए।
किसी भी स्थिति में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी कराना कानूनन अपराध है, और स्कूल जैसी संस्था में यदि ऐसा हो रहा है तो यह अत्यंत शर्मनाक है।
यह भी पढ़ें:- नीमच-रतलाम रेलवे लाइन के दोहरीकरण और विद्युतीकरण कार्य अंतिम चरण में, दिसंबर तक पूरा होगा 1100 करोड़ का प्रोजेक्ट
निगरी हाई स्कूल की यह घटना शिक्षा व्यवस्था पर सीधा प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है।
बच्चों के हाथों में किताबों की जगह फावड़ा थमाना, उनके भविष्य को अंधकार में धकेलने जैसा है।
अब ज़रूरत इस बात की है कि प्रशासन नींद से जागे, और दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करे, ताकि शिक्षा का मंदिर फिर से सम्मानित हो सके और बच्चों को उनका हक मिल सके – शिक्षा का अधिकार, न कि श्रम।