मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की फायरब्रांड नेता उमा भारती ने एक बार फिर अपनी ही पार्टी के खिलाफ तल्ख तेवर दिखाए हैं। इस बार उन्होंने अपने परिवार के बहाने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पर निशाना साधा है। सोशल मीडिया पर किए गए एक भावुक पोस्ट में उन्होंने कहा कि राजनीति में उनके योगदान की वजह से उनके परिवार ने लंबे समय तक उपेक्षा और प्रताड़ना सही है, लेकिन भाजपा ने कभी इस दर्द को समझा नहीं।
“टिकट देना कोई एहसान नहीं, मजबूरी थी”
उमा भारती ने लिखा, “मेरे एक भाई के बेटे राहुल को टिकट देना भाजपा की कोई कृपा नहीं, पार्टी की राजनीतिक मजबूरी थी। बुंदेलखंड में यदि राहुल को टिकट नहीं मिलता तो भाजपा को भारी नुकसान हो सकता था।”
उन्होंने यह भी कहा कि उनका परिवार जनसंघ के समय से भाजपा में सक्रिय है, और उनके भतीजे राहुल और सिद्धार्थ तो उस समय से संघ में बाल स्वयंसेवक थे जब वह खुद राजनीति से दूर थीं।
परिवार को भुगतना पड़ा नुकसान
उमा भारती ने कहा, “मेरे भाइयों की संतानों ने सिर्फ मेरी छवि की चिंता में खुद को सीमित कर लिया। वे जितने योग्य थे, उतनी तरक्की नहीं कर सके। वे सिर्फ इसलिए पीछे रह गए क्योंकि वे मेरे परिवार के सदस्य थे।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा की सरकारों में भी उनके परिवार को पर्याप्त सम्मान और अवसर नहीं मिला।
सामंती शोषण का भी जिक्र
अपनी फेसबुक पोस्ट में उमा भारती ने टीकमगढ़ जिले के संदर्भ में लिखा कि वहां का “सामंती शोषण आज भी बरकरार है। यह भाजपा की सरकार में भी खत्म नहीं हो पाया।”
उन्होंने यह संकेत भी दिया कि भाजपा सरकारें भी इस समस्या को जड़ से खत्म करने में असफल रही हैं।
कांग्रेस और भाजपा, दोनों को घेरा
उमा भारती ने न सिर्फ भाजपा, बल्कि कांग्रेस की सरकारों को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने लिखा कि “सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या भाजपा की, मेरे परिवार को हमेशा मेरी वजह से प्रताड़ना ही मिली।”
सियासी संदेश क्या है?
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो उमा भारती का यह पोस्ट सिर्फ निजी दुख बयान करने के लिए नहीं है। यह एक स्पष्ट संदेश है – न सिर्फ भाजपा नेतृत्व को, बल्कि उन कार्यकर्ताओं और नेताओं को भी जो अब उन्हें पार्टी में हाशिए पर धकेलते नजर आते हैं।

हाल ही में भाजपा के टिकट वितरण को लेकर कई नेता नाराज दिखे हैं, और उमा का यह बयान ऐसे समय में आया है जब मध्यप्रदेश में संगठनात्मक फेरबदल की चर्चा भी जोरों पर है।
क्या लौटेगी उमा की सक्रियता?
एक दौर में मध्यप्रदेश की राजनीति में उमा भारती का नाम वजन रखता था। राम मंदिर आंदोलन से लेकर मुख्यमंत्री पद तक का सफर उनके राजनीतिक जीवन की ऊंचाई थी। अब जब वे लंबे समय से सक्रिय राजनीति से दूरी बनाए हुए हैं, यह पोस्ट कहीं न कहीं इस ओर भी इशारा करती है कि वे फिर से मुख्यधारा में आने का मन बना सकती हैं — या फिर भाजपा के भीतर दबे असंतोष को एक स्वर देने की भूमिका में होंगी।
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उमा भारती की यह पोस्ट भाजपा के लिए सिर्फ एक व्यक्तिगत शिकायत नहीं, बल्कि संगठन के भीतर उपेक्षित नेताओं की एक बड़ी भावना का प्रतीक भी हो सकती है। आगामी चुनावों से पहले ऐसे बयानों का असर पार्टी की छवि और आंतरिक एकता दोनों पर पड़ सकता है।