भोपाल।
मध्यप्रदेश पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में श्रीरामचरितमानस की चौपाइयों के पाठ को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। पुलिस के एडीजी (प्रशिक्षण) राजाबाबू सिंह द्वारा ट्रेनी जवानों को बैरक में श्रीरामचरितमानस की चौपाइयां पढ़ने का सुझाव दिए जाने के बाद कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने आ गए हैं। जहां कांग्रेस ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया है, वहीं बीजेपी इसे सांस्कृतिक जागरूकता और आत्मबल का माध्यम मान रही है।
कांग्रेस ने उठाए सवाल – “क्या ये धार्मिक थोपना नहीं?”
कांग्रेस प्रवक्ता फिरोज सिद्दीकी ने इस पूरे मामले को संविधान के मूल स्वरूप के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा कि –
“हर नागरिक को संविधान धर्म की स्वतंत्रता देता है। किसी को भी एक विशेष धर्म का ग्रंथ पढ़ने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह न केवल संवैधानिक अधिकारों का हनन है, बल्कि पुलिस जैसी धर्मनिरपेक्ष संस्था की गरिमा पर भी सवाल है।”
सिद्दीकी ने आगे कहा कि पुलिस का काम कानून व्यवस्था बनाए रखना है, न कि किसी एक धर्म विशेष के प्रचार-प्रसार का मंच बनना। उन्होंने पुलिस ट्रेनिंग में तटस्थ और वैज्ञानिक सोच के प्रशिक्षण पर ज़ोर देने की मांग की।
बीजेपी ने बताया प्रेरक और आत्मबल बढ़ाने वाला कदम
वहीं दूसरी ओर बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा ने एडीजी के सुझाव का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि –
“श्रीरामचरितमानस भारत की सांस्कृतिक और नैतिक विरासत है। इसके पाठ से आत्मबल बढ़ता है, संयम आता है और दूसरों के प्रति सद्भाव जागता है। भगवान राम खुद विषम परिस्थितियों में जिए लेकिन कभी किसी को कष्ट नहीं दिया – ये सीख हर व्यक्ति के लिए प्रासंगिक है।”
रामेश्वर शर्मा ने पुलिस विभाग की इस पहल को सराहते हुए कहा कि आज के समय में जब समाज तनाव से गुजर रहा है, ऐसे ग्रंथों से मानसिक संतुलन और नैतिक बल प्राप्त हो सकता है।

मुस्लिम ट्रेनी आरक्षक ने दिया संतुलित बयान
इस विवाद में नया मोड़ तब आया जब एक मुस्लिम ट्रेनी आरक्षक जीशान शेख ने श्रीरामचरितमानस पाठ पर समर्थन जताया। उन्होंने कहा –
“हमें प्रेरणा जहां से मिले, वहां से लेना चाहिए। भगवान राम वनवास में रहे, तो क्या हम नौ महीने ट्रेनिंग सेंटर में नहीं रह सकते? हमें अच्छे विचारों से लाभ लेना चाहिए।”
उनके इस बयान ने सोशल मीडिया पर सकारात्मक प्रतिक्रिया पाई है और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बताया जा रहा है।
कौन हैं राजाबाबू सिंह?
राजाबाबू सिंह 1994 बैच के IPS अधिकारी हैं और वर्तमान में एडीजी (प्रशिक्षण), मध्यप्रदेश के पद पर कार्यरत हैं। वे धार्मिक प्रवृत्ति के माने जाते हैं और पूर्व में ग्वालियर जोन में रहते हुए गीता की हजारों प्रतियां वितरण कर चुके हैं। उन्होंने जम्मू-कश्मीर और दिल्ली में भी पुलिस सेवा दी है। उनका यह भी मानना है कि भारतीय ग्रंथों में अनुशासन और कर्तव्यबोध का सशक्त पाठ मौजूद है जो पुलिस बल में अनुशासन लाने में मदद करता है।
विवाद पर क्या बोले वरिष्ठ अधिकारी?
हालांकि पुलिस विभाग की ओर से इस सुझाव को कोई अनिवार्य आदेश नहीं बताया गया है। अधिकारियों का कहना है कि यह केवल एक प्रेरक विचार था, जिसे अमल में लाना या न लाना ट्रेनी आरक्षकों की व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर है। यह जबरदस्ती नहीं है।
क्या कहना है विशेषज्ञों का?
कुछ संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोई धार्मिक ग्रंथ प्रेरणा देने के लिए केवल सुझाव के रूप में प्रस्तुत किया जाए और उसमें बाध्यता न हो, तो यह संविधान के विरुद्ध नहीं माना जा सकता। लेकिन अगर यह सुझाव आने वाले समय में नीति का हिस्सा बनता है, तो यह धार्मिक निष्पक्षता के सिद्धांत से टकरा सकता है।
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पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में श्रीरामचरितमानस के पाठ पर मचा विवाद फिलहाल विचारों की लड़ाई बन चुका है। एक ओर सांस्कृतिक मूल्यों और प्रेरणा की बात है, तो दूसरी ओर धर्मनिरपेक्षता और संवैधानिक अधिकारों की चिंता। अब देखने वाली बात यह होगी कि राज्य सरकार और पुलिस मुख्यालय इस विषय पर क्या रुख अपनाते हैं।