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छात्रावास में दरिंदगी! बेहोश होने तक पीटी गई छात्रा, प्रशासन की लीपापोती से उठे बड़े सवाल

सीधी (मध्यप्रदेश)।
कस्तूरबा गांधी बालिका छात्रावास, अमिलिया से एक रोंगटे खड़े कर देने वाला मामला सामने आया है। यहां वार्डन उर्मिला पटेल ने छात्रा अंजू प्रजापति को मामूली सी बात पर इतनी बेरहमी से पीटा कि वह बेहोश हो गई। यह घटना न केवल छात्रावास की भयावह स्थिति को उजागर करती है, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की भी पोल खोलती है।

गुरुवार की दोपहर छात्रा अंजू ने वार्डन के बच्चे को गोद में उठा लिया था, जिससे नाराज़ होकर वार्डन ने उसे बुरी तरह पीट डाला। अंजू बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ी। अन्य छात्राओं की मदद से उसे पास के अमिलिया स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची को मानसिक और शारीरिक आघात पहुंचा है।

प्रशासन ने निभाई रस्म, नहीं मिला इंसाफ

शुक्रवार को जिला शिक्षा अधिकारी पवन सिंह और थाना प्रभारी राकेश बैस अपनी टीम के साथ छात्रावास पहुंचे, लेकिन वहां सिर्फ औपचारिकता निभाई गई। छात्राओं से कोरे कागजों पर हस्ताक्षर करवा लिए गए, लेकिन किसी का बयान दर्ज नहीं हुआ। इससे यह शक गहराता जा रहा है कि क्या प्रशासन इस मामले को दबाने की कोशिश कर रहा है?

छात्रावास की अन्य बच्चियों ने भी बताया कि वार्डन का व्यवहार हमेशा से हिंसक रहा है। कई बार शिकायतें की गईं, लेकिन कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह सिलसिला अब एक गंभीर अपराध में बदल चुका है, जिसे अब अनदेखा नहीं किया जा सकता।

तहसीलदार की पुष्टि के बाद भी टालमटोल

घटना के बाद तहसीलदार परम सुख बंसल ने मौके पर पहुंचकर पंचनामा तैयार किया और मारपीट की पुष्टि भी की। बावजूद इसके न तो वार्डन को गिरफ्तार किया गया और न ही उस पर कोई सख्त कार्रवाई हुई। थाना प्रभारी राकेश बैस का कहना है कि उन्हें अब तक कोई लिखित शिकायत नहीं मिली है और वे सिर्फ वीडियो के आधार पर कार्रवाई नहीं कर सकते।

जब उनसे सवाल पूछा गया कि बिना शिकायत के आप हॉस्टल में क्या करने गए थे, तो उन्होंने चुप्पी साध ली। यही रवैया प्रशासन की मंशा पर सवाल खड़े करता है।

शिक्षा विभाग का गैरजिम्मेदाराना जवाब

दूसरी ओर, जिला शिक्षा अधिकारी पवन सिंह ने बेहद गैरजिम्मेदाराना रवैया अपनाते हुए सिर्फ इतना कहा कि वार्डन को छात्रावास से हटाकर दूसरी जगह भेजा जाएगा। जब उनसे पूछा गया कि क्या उस पर विभागीय या कानूनी कार्रवाई होगी, तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

पीड़ित छात्रा की गुहार – “मुझे न्याय चाहिए”

पीड़ित छात्रा अंजू प्रजापति ने सिसकते हुए कहा, “मैंने सिर्फ बच्चे को गोद में लिया था। उन्होंने गुस्से में मारा। मुझे बहुत दर्द हुआ, अब मुझे न्याय चाहिए।” उसकी आंखों में डर और प्रशासन से उम्मीद दोनों साफ दिख रहे थे।

जनता और मीडिया का दबाव बना, कार्रवाई की मांग तेज

यह मामला अब सिर्फ छात्रा अंजू की पिटाई तक सीमित नहीं रहा, यह सवाल बन चुका है कि क्या सरकारी छात्रावासों में बच्चियां सुरक्षित हैं? आम जनता, अभिभावक और छात्र संगठन प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। अगर दोषियों को जल्द सज़ा नहीं मिली, तो यह घटना प्रशासनिक उदासीनता की एक और मिसाल बनकर रह जाएगी।

क्या सिर्फ ट्रांसफर से मिटेगा जुल्म का निशान?

सवाल यह है कि क्या एक आरोपी वार्डन को दूसरी जगह भेज देना ही न्याय है? या फिर यह संकेत है कि बच्चों की सुरक्षा अब फाइलों और तबादलों में सिमट गई है?

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अब ज़रूरत है पारदर्शी जांच और वार्डन पर सख्त कानूनी कार्रवाई की। ताकि यह मामला एक उदाहरण बने—कि बच्चियों पर हाथ उठाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।

यह सिर्फ एक छात्रा की नहीं, पूरे सिस्टम की परीक्षा है।

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