भोपाल
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में ‘नो हेलमेट, नो पेट्रोल’ नियम को लेकर प्रशासन ने भले ही सख्ती की बात कही हो, लेकिन जमीनी हालात कुछ और ही बयां कर रहे हैं। कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह द्वारा जारी आदेश के अनुसार, 1 अगस्त से बिना हेलमेट के दोपहिया चालकों को पेट्रोल नहीं दिया जाएगा। लेकिन शुक्रवार को शहर के कई पेट्रोल पंपों पर इसका जमकर मजाक बना।
हेलमेट की अदला-बदली से चली गाड़ी, नियमों की उड़ी धज्जियां
शहर के प्रभात चौराहे से लेकर एमपी नगर, श्रीराम कॉलोनी और प्रगति चौराहा तक, पेट्रोल पंपों पर अजब ही नज़ारा देखने को मिला। एक-दो नहीं, दर्जनों चालक बिना हेलमेट के पेट्रोल पंप पहुंचे। जब उन्हें रोक गया, तो वहीं खड़े किसी दूसरे व्यक्ति से हेलमेट उधार लेकर पेट्रोल भरवाया और फिर हेलमेट वापस कर दिया।
यह सिलसिला पूरे दिन चलता रहा। एक हेलमेट कई सवारियों के सिर चढ़ता रहा, लेकिन पेट्रोल मिलता रहा। पंप कर्मचारियों ने भी इसे लेकर कोई सख्ती नहीं दिखाई, मानो उन्होंने आंखें मूंद रखी हों।
‘हेलमेट शेयरिंग ऐप’ का ट्रायल जैसे चल रहा हो
शहर में ये स्थिति देखकर लोगों ने चुटकी ली कि भोपाल में जैसे ‘हेलमेट शेयरिंग ऐप’ का ट्रायल चल रहा हो। कई जगह एक ही हेलमेट को 4-5 लोग पहनकर पेट्रोल भरवाते दिखे। सबसे हैरानी की बात यह रही कि ना कहीं पुलिस नजर आई, ना प्रशासन का कोई प्रतिनिधि।
पुलिसकर्मी ने भी मांगा उधार का हेलमेट
गंभीर बात तब सामने आई जब नानके पेट्रोल पंप पर एक पुलिसकर्मी भी बिना हेलमेट पहुंच गया। पंप कर्मचारी ने जब उसे पेट्रोल देने से इनकार किया, तो पुलिसकर्मी ने पास खड़े एक युवक से हेलमेट मांगा, पेट्रोल भरवाया और फिर उसे लौटा दिया। इस घटना ने साफ कर दिया कि खुद कानून के रक्षक ही आदेश की धज्जियां उड़ा रहे हैं।

बोतल में पेट्रोल का धंधा भी जोरों पर
शुक्रवार को दोपहर करीब 12 बजे ISBT के पास स्थित एक पंप पर खुलेआम बोतल में पेट्रोल बेचा गया। नियमों के अनुसार बोतल या अन्य असुरक्षित तरीकों से पेट्रोल देना कानूनन अपराध है, लेकिन वहां न कोई रोकने वाला था, न कोई पूछने वाला। पंप कर्मचारी ने बेझिझक पैसा लिया और बोतल में पेट्रोल भर दिया।
प्रशासन सिर्फ कागज़ों तक सीमित
भोपाल में कुल 192 पेट्रोल पंप हैं, जहां हर दिन करीब 11 लाख लीटर पेट्रोल की खपत होती है। बावजूद इसके, ज़मीनी स्तर पर नियमों का पालन नहीं हो रहा है। आपूर्ति नियंत्रक चंद्रभान सिंह जादौन ने बताया कि पहले 3 जगहों पर कार्रवाई की गई थी, लेकिन शुक्रवार को शहर भर में कहीं भी किसी तरह की जांच या कार्यवाही नजर नहीं आई।
29 सितंबर तक प्रभावशील आदेश, लेकिन पालन कौन कराए?
यह आदेश 29 सितंबर तक प्रभावशील रहेगा। उल्लंघन करने पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 223 के तहत व्यक्ति, संस्था और पंप संचालक पर कार्रवाई की बात कही गई है, लेकिन सवाल ये है कि जब कार्रवाई ही नहीं होगी, तो डर किसका?
जनता में नाराजगी, सवाल – नियम बनाए हैं या दिखाने के लिए?
लोगों में इस पूरे मामले को लेकर नाराजगी है। उनका कहना है कि यदि आदेश लागू नहीं करवा सकते, तो ऐसे नियमों का क्या फायदा? “ये तो सिर्फ कागज़ों में सख्ती है, सड़क पर सब ढील है।”
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भोपाल में ‘नो हेलमेट, नो पेट्रोल’ का आदेश धीरे-धीरे एक मज़ाक बनता जा रहा है। जिस उद्देश्य से यह कदम उठाया गया था, वह हेलमेट की अदला-बदली और प्रशासन की नज़रअंदाज़ी में दम तोड़ता दिख रहा है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस आदेश को सिर्फ फोटो और प्रेस नोट के लिए लाया था? या फिर वाकई शहर की सड़कों पर हेलमेट संस्कृति लाने के लिए कुछ ठोस कदम भी उठाएगा?