अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर विशेष रिपोर्ट
सीधी: आज 29 जुलाई, अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस है. यह दिन वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित हुए पहले अंतरराष्ट्रीय बाघ सम्मेलन में घोषित किया गया था. उस समय दुनिया भर में बाघों की संख्या घटकर लगभग 3,200 रह गई थी, जो एक चिंताजनक स्थिति थी. इस सम्मेलन में ‘ट्वेन्टी टू’ (Tx2) पहल की शुरुआत हुई, जिसका लक्ष्य वर्ष 2022 तक दुनिया भर में बाघों की संख्या को दोगुना करना था.
भारत, विशेषकर मध्य प्रदेश, इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. मध्य प्रदेश को देश का ‘टाइगर स्टेट‘ कहा जाता है. राज्य में वर्तमान में लगभग 700 से अधिक बाघों का आवास है, जो देश के कुल बाघों का लगभग एक-तिहाई है. यह संख्या लगातार बढ़ रही है, जो राज्य के बाघ संरक्षण प्रयासों की सफलता को दर्शाती है.
मप्र में कुल 11 राष्ट्रीय उद्यान और 25 वन्यजीव अभयारण्य हैं, जिनमें से कई बाघों के लिए महत्वपूर्ण आवास है। कान्हा नेशनल पार्क, पेंच नेशनल पार्क, बांधवगढ़ नेशनल पार्क और सतपुड़ा नेशनल पार्क देश के प्रमुख बाघ संरक्षण स्थलों में से हैं.
भारत में बाघों के संरक्षण के लिए वर्ष 1972 में प्रसिद्ध ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की शुरुआत की गई थी। इस परियोजना ने बाघों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मध्य प्रदेश में भी इस परियोजना के तहत कई पहल की गई हैं।
राज्य सरकार ने बाघों के संरक्षण के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- एंटी-पोचिंग अभियान: राज्य सरकार ने बाघों के शिकार को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए हैं और प्रभावी एंटी-पोचिंग अभियान चला रही है.
- जंगल की सुरक्षा: जंगलों की सुरक्षा को बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने पर्याप्त सुरक्षा बल तैनात किए हैं.
स्थानीय समुदायों का सहयोग: राज्य सरकार ने स्थानीय समुदायों को जंगली जीव संरक्षण में शामिल करने के लिए कई कार्यक्रम चलाए हैं. इससे स्थानीय लोगों में बाघों के प्रति जागरूकता बढ़ी है और उन्होंने संरक्षण के प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी है.
पर्यटन विकास: बाघों के संरक्षण के साथ-साथ राज्य सरकार ने पर्यटन को भी बढ़ावा दिया है. इससे एक ओर तो स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिले हैं, वहीं दूसरी ओर पर्यटन से प्राप्त आय का उपयोग बाघ संरक्षण में किया जा रहा है.
हालांकि, बाघ संरक्षण के सामने अभी भी बहुत सी चुनौतियाँ मौजूद हैं, जैसे वन्यजीव अपराध, जंगलों का विनाश और मानव-वन्यजीव संघर्ष. ऐसे चुनौतियों से निपटने के लिए निरंतर प्रयास करने की है.
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम बाघों के संरक्षण के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। हमें अपने जंगलों की रक्षा करनी होगी और स्थानीय समुदायों को बाघ संरक्षण में शामिल करना होगा। केवल तभी हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि आने वाली पीढ़ियां भी बाघों को देख सकेंगी।