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राजस्थान के शिक्षा मंत्री का विवादित बयान: ‘अकबर को महान बताने वाली किताबें जलाएंगे’, महाराणा प्रताप से तुलना पर नाराजगी

राजस्थान, 1 सितंबर 2024: राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने एक विवादित बयान देकर राज्य की राजनीतिक और शैक्षिक हलकों में हलचल मचा दी है। उन्होंने 1 सितंबर को उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में आयोजित भामाशाह सम्मान समारोह के दौरान कहा कि मुगल सम्राट अकबर को महान बताने वाली किताबों को जलाया जाएगा। दिलावर के इस बयान ने महाराणा प्रताप और अकबर के ऐतिहासिक महत्व को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है।

मदन दिलावर ने अपने बयान में कहा, “अकबर की तुलना महाराणा प्रताप से करना और उसे महान बताना मूर्खता है। यह मेवाड़ और राजस्थान के आन-बान-शान के प्रतीक महाराणा प्रताप का अपमान है। महाराणा प्रताप हमारे संरक्षक थे जिन्होंने कभी भी झुकना मंजूर नहीं किया। वहीं, अकबर ने अपने फायदे के लिए कई लोगों की हत्या करवाई।”

राजस्थान :-मदन दिलावर का विवादित बयान

उन्होंने आगे कहा, “राजस्थान के लिए उन लोगों से बड़ा कोई दुश्मन नहीं है जो अपनी स्कूली किताबों में अकबर की तारीफ करते हैं और उसे महान बताते हैं। मैंने सभी किताबें देख ली हैं। अगर कहीं भी ऐसा हुआ तो हम सभी किताबें जलाएंगे। मैं शपथ लेकर कहता हूं कि राजस्थान की किसी किताब में अकबर जैसे लुटेरे और आक्रमणकारी को सम्मान नहीं दिया जाएगा।”

हल्दीघाटी युद्ध और अकबर-महाराणा प्रताप का ऐतिहासिक संदर्भ

मदन दिलावर का बयान ऐतिहासिक संदर्भ पर आधारित है। 18 जून 1576 को हल्दीघाटी का युद्ध मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर की सेनाओं के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व आमेर के मान सिंह प्रथम ने किया था। युद्ध में मेवाड़ की सेना की हार हुई, लेकिन महाराणा प्रताप ने युद्ध से बचकर मुगलों के खिलाफ अपना प्रतिरोध जारी रखा।

महाराणा प्रताप की बहादुरी और प्रतिरोध को भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक मुगल साम्राज्य और अकबर के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका और मुगल शासकों की अधीनता स्वीकार नहीं की।

शैक्षिक पाठ्यक्रम और सांस्कृतिक विवाद

दिलावर के बयान ने राजस्थान के शैक्षिक पाठ्यक्रम में अकबर की भूमिका पर सवाल उठाया है। राज्य सरकार के इस कदम ने एक ओर जहां कुछ लोगों को सांस्कृतिक पहचान की रक्षा का एक सशक्त प्रयास माना है, वहीं दूसरी ओर इसे एक पूर्वाग्रह और सांप्रदायिक दृष्टिकोण के रूप में भी देखा जा रहा है।

विपक्षी दलों ने इस बयान की आलोचना की है और इसे ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करने का प्रयास बताया है। कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया है कि शिक्षा मंत्री का यह बयान सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देने वाला है और इससे शैक्षिक उद्देश्य कमजोर होंगे।

आगे की राह

राज्य सरकार को अब इस विवाद को सुलझाने और शिक्षा के क्षेत्र में एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ऐतिहासिक तथ्यों और सांस्कृतिक संवेदनाओं के बीच एक संतुलन बना रहे और शिक्षा प्रणाली सभी विद्यार्थियों को एक निष्पक्ष और सही दृष्टिकोण प्रदान करे।

मदन दिलावर के बयान ने न केवल स्थानीय राजनीति में हलचल मचाई है, बल्कि पूरे देश में शिक्षा और इतिहास की प्रस्तुतियों पर एक नई बहस को जन्म दिया है। इस मुद्दे पर आगामी दिनों में होने वाली चर्चाएं और निर्णय शिक्षा प्रणाली और सांस्कृतिक पहचान के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।

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