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अटल बिहारी वाजपेयी के OSD ने IC 814 हाईजैक की ‘असली कहानी’ को उजागर किया

नई दिल्ली: भारतीय वायुसेना और सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी के बावजूद, IC 814 हाईजैक की असली कहानी अब सामने आ रही है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के वरिष्ठ सलाहकार कंचन गुप्ता ने हाल ही में एक लेख में इस घटना की कई अनजानी परतें खोल दी हैं। गुप्ता, जो उस समय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के OSD थे, ने इस घटना से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की हैं जो हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई सीरीज के बाद चर्चा में आई हैं।

24 दिसंबर 1999 को इंडियन एयरलाइंस के विमान IC 814 का अपहरण कर लिया गया था। यह विमान काठमांडू से दिल्ली के लिए उड़ान भर रहा था, जब चार आतंकियों ने इसे हाईजैक कर लिया। विमान पहले अमृतसर, फिर लाहौर, दुबई और अंततः अफगानिस्तान के कंधार पहुंचा।

अटल बिहारी वाजपेयी

गुप्ता ने बताया कि उस समय के प्रधानमंत्री वाजपेयी और उनके सहयोगियों को इस हाईजैक की शुरुआती सूचना नहीं दी गई। उन्होंने लिखा, “दिलचस्प बात यह है कि IC 814 के अपहरण की सूचना वाजपेयी की फ्लाइट के पायलट को नहीं दी गई, जबकि भारतीय वायुसेना को इसके बारे में जानकारी थी। इस पर बाद में विवाद भी हुआ था।”

अटल बिहारी वाजपेयी

जबकि प्रधानमंत्री वाजपेयी और उनके सहयोगी दिल्ली पहुंच रहे थे, वरिष्ठ मंत्रियों और सचिवों की इमरजेंसी बैठक पहले ही बुलाई जा चुकी थी। गुप्ता ने खुलासा किया कि IC 814 के पायलट को लाहौर में लैंडिंग की अनुमति नहीं मिली, जिससे विमान को अमृतसर की ओर मोड़ा गया। अमृतसर में, हाईजैकर्स ने विमान को रिफ्यूल करने की मांग की, लेकिन स्थानीय अधिकारियों को इस संकट से निपटने के लिए सही दिशा-निर्देश नहीं मिले।

गुप्ता ने बताया कि जसवंत सिंह, जो उस समय विदेश मंत्री थे, ने पाकिस्तानी विदेश मंत्री से संपर्क कर विमान को उड़ान भरने से रोकने की विनती की। हालांकि, पाकिस्तान ने इस अनुरोध को नकार दिया क्योंकि वे खुद को अपहरण से जोड़ने के बजाय विमान को जल्दी से बाहर निकालना चाहते थे। पाकिस्तान ने विमान को दुबई जाने की अनुमति दी, जहां UAE सरकार ने कुछ बंधकों को उतारने की अनुमति दी और बातचीत की प्रक्रिया शुरू की।

गुप्ता के अनुसार, 25 दिसंबर को विमान कंधार पहुंचा, जहां बुनियादी सुविधाओं की कमी थी और आतंकवादियों की मांगों के अनुसार 36 आतंकवादियों को रिहा करने का समझौता किया गया। इसके बाद, बंधकों को 31 दिसंबर को दिल्ली लाया गया और सरकार की आलोचना शुरू हो गई।

गुप्ता ने इस घटनाक्रम के बीच सरकारी निर्णय और उच्च स्तरीय वार्ताओं पर प्रकाश डाला और बताया कि कैसे जसवंत सिंह ने व्यक्तिगत रूप से बंधकों की रिहाई की निगरानी की। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि राजनीतिक और सामाजिक दबाव के चलते सरकार ने आत्मसमर्पण किया, जिसे बाद में आलोचना का सामना करना पड़ा।

गुप्ता के लेख में यह भी उल्लेख किया गया कि राष्ट्रीय सुरक्षा की दिशा में तत्कालीन सरकार के फैसले पर गंभीर प्रश्न उठाए गए हैं। उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम को एक नैतिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से समझाया, जिसमें न केवल आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष, बल्कि उन नेताओं के प्रति जनता की अपेक्षाओं की भी चर्चा की गई है जो इस संकट की स्थिति में सामने आए।

इस लेख ने IC 814 हाईजैक के सभी पहलुओं को नए दृष्टिकोण से देखने का अवसर प्रदान किया है और यह प्रश्न उठाया है कि क्या हमारी सरकारें और सुरक्षा एजेंसियां संकट के समय उचित निर्णय ले पाती हैं।

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