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आजमगढ़ साइबेरियन पक्षियों पर शिकारियों की नजर, पुलिस की सख्ती के बावजूद नहीं थम रहा शिकार

आजमगढ़, उत्तर प्रदेश: आजमगढ़ जिले के सगड़ी तहसील क्षेत्र में स्थित लाल सलोना ताल, जो करीब 1,000 हेक्टेयर में फैला हुआ है, सर्दियों के मौसम में साइबेरियन पक्षियों का मुख्य आकर्षण बनता है। हर साल नवंबर में इन विदेशी पक्षियों का आगमन इस ताल और इसके आसपास के इलाकों में होता है। लेकिन पक्षियों की यह खूबसूरती अब शिकारियों के निशाने पर है।

शिकार पर रोक के बावजूद सक्रिय शिकारी

साइबेरियन पक्षियों का शिकार कानूनी रूप से प्रतिबंधित है, फिर भी शिकारियों की गतिविधियां थम नहीं रही हैं। शिकारी गनशॉट, लाइसेंसी असलहे, जाल और पक्षियों की ध्वनियों का उपयोग करके इन पक्षियों को फंसा रहे हैं। पकड़े गए पक्षियों को स्थानीय बाजार में 1,000 से 1,200 रुपये प्रति पक्षी की दर पर बेचा जा रहा है। पक्षियों को पकड़ने के बाद उनके पंख तोड़ दिए जाते हैं, ताकि वे उड़ न सकें।

पुलिस की सख्ती और कार्रवाई

एसपी ग्रामीण चिराग जैन ने बताया कि जीयनपुर पुलिस ने हाल ही में कार्रवाई करते हुए एक शिकारी को गिरफ्तार किया है। उसके पास से पांच साइबेरियन पक्षी और शिकार के उपकरण बरामद किए गए। पुलिस अब उन ग्रामीणों के लाइसेंसी हथियारों की जांच कर रही है, जिनके असलहे से पक्षियों का शिकार किया जा रहा है। दोषी पाए जाने पर संबंधित व्यक्तियों के हथियार जब्त करने और उनके खिलाफ कार्रवाई की तैयारी की जा रही है।

ताल का महत्व और खतरा

लाल सलोना ताल न केवल अपनी सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है, बल्कि यह क्षेत्र के लोगों के लिए आजीविका का भी प्रमुख साधन है। यहां कमल के बीज, तिन्नी चावल, मछली आदि का व्यापार होता है। साथ ही, साइबेरियन पक्षियों का आगमन ताल के आकर्षण को और बढ़ा देता है। लेकिन इन पक्षियों का शिकार न केवल पर्यावरणीय असंतुलन पैदा कर रहा है, बल्कि क्षेत्र की जैव विविधता को भी गंभीर खतरे में डाल रहा है।

स्थानीय जनजागरूकता की जरूरत

पुलिस प्रशासन ने इस गंभीर मुद्दे को रोकने के लिए चौपाल का आयोजन किया। एसपी ग्रामीण ने स्थानीय ग्रामीणों से आग्रह किया कि वे शिकारियों की गतिविधियों की सूचना पुलिस को दें। साथ ही, पुलिस ने चेतावनी दी है कि शिकारी पकड़े जाने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई का सामना करेंगे।

अपराध पर लगाम के लिए कदम

पुलिस अब निगरानी बढ़ाने के लिए ड्रोन और अन्य तकनीकों का इस्तेमाल करने पर विचार कर रही है। इसके अलावा, पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए गांवों में अभियान चलाने की योजना बनाई जा रही है।

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यह मामला एक बार फिर याद दिलाता है कि प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता की रक्षा के लिए सख्त कानूनों का पालन और सामुदायिक सहयोग कितना जरूरी है।

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