मुंबई।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को कानून के दायरे में रहकर काम करने की सख्त चेतावनी दी है। कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसियों को अपने अधिकारों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए और नागरिकों को अनुचित रूप से प्रताड़ित करने से बचना चाहिए। कोर्ट ने मुंबई के एक रियल एस्टेट डेवलपर राकेश जैन के खिलाफ बिना उचित आधार के जांच शुरू करने पर ED और शिकायतकर्ता दोनों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
जज की टिप्पणी: एजेंसियों को सख्त संदेश की जरूरत
21 जनवरी को न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई की। उन्होंने ED के एक्शन को “दुर्भावनापूर्ण” करार देते हुए कहा, “हमें ऐसा कॉस्ट लगाना होगा जो मिसाल बने।” कोर्ट ने जोर देकर कहा कि ED जैसी एजेंसियों को कानून के दायरे में काम करना चाहिए और उनके द्वारा किसी भी प्रकार का दुरुपयोग स्वीकार्य नहीं है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जज ने कहा, “यह मामला PMLA कानून (Prevention of Money Laundering Act) लागू करने की आड़ में अत्याचार का क्लासिक उदाहरण है। मनी लॉन्ड्रिंग तब होती है, जब किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर निजी लाभ के लिए समाज या राष्ट्र के हितों की अनदेखी की जाती है। लेकिन इस केस में कोई धोखाधड़ी का तथ्य मौजूद नहीं है।”
मामला क्या था?
यह मामला विले पार्ले के रियल एस्टेट डेवलपर राकेश जैन और एक प्रॉपर्टी खरीदार के बीच का था। खरीदार ने राकेश पर समझौते के उल्लंघन और धोखाधड़ी का आरोप लगाया था। शिकायत के अनुसार, खरीदार ने राकेश से दो फ्लोर खरीदे और 4 करोड़ रुपये में रेनोवेशन का एग्रीमेंट किया। समझौते के तहत 2007 तक काम पूरा कर कब्जा दिया जाना था।
हालांकि, राकेश ने देरी के लिए खरीदार द्वारा बार-बार किए गए बड़े बदलावों को जिम्मेदार ठहराया, जिससे ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट (OC) जारी नहीं हो सका। इसके बाद खरीदार ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट दाखिल की, जिसे 2012 में ED को सौंप दिया गया।
ED की जांच और कोर्ट का फैसला
ED ने जांच में दावा किया कि खरीदार के पैसे का इस्तेमाल राकेश जैन ने अन्य प्रॉपर्टी खरीदने के लिए किया। स्पेशल PMLA कोर्ट ने इन प्रॉपर्टीज़ को जब्त करने का आदेश दिया था। इस आदेश को चुनौती देते हुए राकेश जैन बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंचे।

हाई कोर्ट ने जांच के सभी कार्यवाही रद्द करते हुए कहा कि इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग का कोई आधार नहीं था। न्यायमूर्ति जाधव ने कहा कि “मुंबई में विकास इस तरह के समझौतों पर निर्भर करता है और इसमें किसी कानून का उल्लंघन नहीं हुआ है।”
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इस फैसले के जरिए कोर्ट ने ED और शिकायतकर्ता को सख्त संदेश दिया है कि किसी भी कार्रवाई को वैध और ईमानदारी से किया जाना चाहिए। जुर्माने के साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून का दुरुपयोग न केवल नागरिकों के अधिकारों का हनन करता है, बल्कि न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता को भी ठेस पहुंचाता है।