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चुनावी घोषणाओं के बारे में पाठकों की मिश्रित प्रतिक्रियाएं इस प्रकार सामने आई हैं

  1. चुनाव आयोग को सख्ती बरतनी चाहिए:
    राजेन्द्र बहादुर सिंह (चुरू) ने चुनाव आयोग से मांग की है कि वे लोकलुभावन और थोथी घोषणाओं पर सख्ती बरतें। उन्होंने सुझाव दिया कि घोषणाओं का स्पष्ट विजन तय किया जाए और यदि वे पूरी न हों तो सजा और जुर्माने का प्रावधान हो।
  2. मुफ्त की रेवड़ियां और जनता का छलावा:
    संजय निघोजकर (धार) ने राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव से पहले की जाने वाली मुफ्त घोषणाओं को लालच और अकर्मण्यता का प्रतीक बताया, जो केवल सत्ता की लालसा और राजनीतिक एजेंडे को दर्शाती हैं। उनका कहना था कि चुनावों के बाद इन घोषणाओं का कोई ठोस परिणाम नहीं निकलता।
  3. चुनावी घोषणाओं पर कानूनी कार्रवाई हो:
    राधेश्याम मेहरा (हनुमानगढ़) ने कहा कि चुनावी घोषणाओं को लागू करने के लिए कानून बनाना चाहिए। अगर कोई दल अपनी घोषणाओं को लागू नहीं करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए।
  4. मुफ्त की घोषणाओं का करदाताओं पर असर:
    विनायक गोयल (रतलाम) ने कहा कि चुनावी घोषणाओं का सीधा असर करदाताओं की जेब पर पड़ता है, विशेषकर मध्यम वर्ग को जो खुद को ठगा हुआ महसूस करता है।
  5. थोथा चना, बाजे घना:
    प्रियव्रत चारण (जोधपुर) ने नेताओं की चुनावी रणनीति को “थोथा चना, बाजे घना” कहा, यानी चुनाव के समय नेता अपनी बातों में मिठास घोलते हैं, लेकिन जनता अब जागरूक हो चुकी है और जानती है कि यह महज दिखावा होता है।
  6. सही राजनीतिक दल का चुनाव आवश्यक:
    मुकेश सोनी (जयपुर) ने कहा कि चुनावी घोषणाओं को सकारात्मक सोच के साथ स्वीकार करना चाहिए, लेकिन नेताओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई नियंत्रण और आधारभूत विकास पर ध्यान देना चाहिए।
  7. चुनावी वादों की जवाबदेही हो:
    पवन बैरवा (भीलवाड़ा) ने राजनीतिक दलों के चुनावी वादों पर जवाबदेही की जरूरत जताई। उनका कहना था कि सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिए ताकि हर वादा पूरा हो और योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचे।
  8. घोषणापत्र: वोट बटोरने का जरिया:
    अजीत सिंह सिसोदिया (बीकानेर) ने चुनावी घोषणापत्र को वोट बटोरने का एक साधन बताया। उनका सुझाव था कि चुनाव आयोग को घोषणापत्र पर पाबंदी लगानी चाहिए ताकि चुनाव में पारदर्शिता बनी रहे।
  9. मुफ्त की योजनाओं का दुष्प्रभाव:
    मनवीर चंद कटोच (कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश) ने मुफ्त योजनाओं की आलोचना करते हुए कहा कि ये योजनाएं देश के विकास से खिलवाड़ कर रही हैं और जनता को जागरूक होना चाहिए।
  10. वादे बड़े, पर हकीकत कुछ और:
    निर्मला देवी वशिष्ठ (अलवर) ने कहा कि राजनीतिक दल चुनाव के दौरान बड़े वादे करते हैं, लेकिन चुनाव के बाद इन योजनाओं का कोई ठोस परिणाम नहीं निकलता। उनका मानना था कि जनता को जागरूक करना जरूरी है कि जो वादा पूरा करे, वही सही नेता है।

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इन प्रतिक्रियाओं से यह स्पष्ट होता है कि जनता चुनावी घोषणाओं को लेकर काफी सजग और चिंतित है, और वे चाहते हैं कि इन घोषणाओं को धरातल पर उतारने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।

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