महात्मा गांधी की परपोती नीलम बेन पारिख का 93 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे नवसारी की अलका सोसाइटी में रहती थीं और अपना संपूर्ण जीवन समाज सेवा, महिलाओं के उत्थान, और शिक्षा को समर्पित कर दिया था। उनके निधन से समाज ने एक सच्चे गांधीवादी विचारधारा वाले व्यक्तित्व को खो दिया है।
गांधी परिवार की विरासत को संभालने वाली नीलम बेन
नीलम बेन पारिख, महात्मा गांधी के पुत्र हरिदास गांधी की वंशज थीं। उन्होंने अपने माता-पिता रामीबेन और योगेंद्रभाई पारिख से मिले संस्कारों के प्रभाव में आकर बचपन से ही गांधीवादी विचारधारा को अपने जीवन में अपनाया। सत्य, अहिंसा और सेवा के मूल सिद्धांतों पर चलते हुए उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों, विशेष रूप से महिलाओं के लिए उल्लेखनीय कार्य किए।
महिलाओं की शिक्षा और आत्मनिर्भरता में महत्वपूर्ण योगदान
नीलम बेन ने महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों को लेकर कई अभियानों का नेतृत्व किया। उन्होंने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई, बुनाई, और हस्तशिल्प जैसे कार्यों में प्रशिक्षित किया। इसके अलावा, उन्होंने कई स्वास्थ्य और जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया, जिससे गरीब और वंचित तबकों को सीधा लाभ मिला।


नीलम बेन पारिख कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़ी रहीं। उन्होंने गांधीवादी सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिए अनेक कार्यशालाओं और सेमिनारों का आयोजन किया। उनके प्रयासों से हजारों महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के अवसर मिले।
नीलम बेन पारिख का अंतिम संस्कार
नीलम बेन की अंतिम यात्रा 2 अप्रैल को सुबह 8 बजे उनके पुत्र डॉ. समीर पारिख के घर से शुरू होकर वीरावल श्मशान घाट तक जाएगी। उनके निधन की खबर सुनकर स्थानीय लोग और गांधीवादी विचारधारा से जुड़े कार्यकर्ता गहरे शोक में हैं।
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नीलम बेन पारिख का निधन समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। वे अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गई हैं, जिससे प्रेरणा लेकर नई पीढ़ी समाज सेवा की दिशा में आगे बढ़ सकती है। उनका योगदान सदैव याद रखा जाएगा।