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वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024: विवाद, पक्ष-विपक्ष और संभावित प्रभाव

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024, मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित एक संशोधन बिल है, जिसका उद्देश्य वक्फ अधिनियम, 1995 में बदलाव करना है। सरकार का दावा है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाएगा। हालाँकि, इसके कुछ प्रावधानों को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखा टकराव हो रहा है।

प्रमुख संशोधन और विवाद

संशोधनसरकार का तर्कविपक्ष की आपत्ति
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्तिपारदर्शिता और समावेशिता बढ़ेगीधार्मिक मामलों में हस्तक्षेप, मुस्लिम स्वायत्तता का उल्लंघन
जिला कलेक्टर को संपत्ति विवादों में अधिकारविवादों का तेज़ समाधानवक्फ बोर्ड की स्वतंत्रता खत्म होगी, सरकारी नियंत्रण बढ़ेगा
वक्फ संपत्तियों का अनिवार्य पंजीकरणअतिक्रमण और भ्रष्टाचार रुकेगासरकार संपत्तियों पर नियंत्रण चाहती है
बोर्ड में महिला प्रतिनिधित्वप्रगतिशील कदमकेवल सांकेतिक बदलाव, असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश
संविधानिक सवालसंविधान के तहत सुधारअनुच्छेद 25 और 26 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन

सत्ता पक्ष (एनडीए) का रुख

बीजेपी और उसके सहयोगी दलों (जेडीयू, टीडीपी, एलजेपी) का कहना है कि:
✔️ वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए यह विधेयक जरूरी है।
✔️ गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति निष्पक्षता लाने के लिए की जा रही है।
✔️ जिला कलेक्टर की भूमिका विवादों को तेजी से निपटाने में मदद करेगी।
✔️ महिलाओं का प्रतिनिधित्व सामाजिक न्याय को बढ़ावा देगा।
✔️ यह विधेयक संविधान सम्मत है और किसी समुदाय के खिलाफ नहीं है।

विपक्ष (इंडिया ब्लॉक) का रुख

कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, टीएमसी और अन्य दलों का कहना है कि:
❌ यह विधेयक मुस्लिम धार्मिक संस्थानों में हस्तक्षेप है।
❌ सरकार का असल उद्देश्य वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करना है।
जिला कलेक्टर को अधिकार देने से वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता समाप्त हो जाएगी
❌ सरकार ने जेपीसी में विपक्षी सुझावों को खारिज किया, जिससे प्रक्रिया अलोकतांत्रिक हो गई।

लोकसभा में स्थिति

✔️ एनडीए के पास बहुमत (293 सांसद) होने से यह बिल पास हो सकता है।
इंडिया ब्लॉक (233 सांसद) कड़ा विरोध कर सकता है और बिल को पुनर्विचार के लिए समिति में भेजने की मांग कर सकता है।

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वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 देश की राजनीति में बड़ा मुद्दा बन गया है। सत्ता पक्ष इसे सुधारवादी कदम मानता है, जबकि विपक्ष इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बता रहा है। इस पर आगे का घटनाक्रम संसद की बहस और विपक्ष के विरोध पर निर्भर करेगा।

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