नागपुर में दंगे के एक आरोपी के घर पर हुई बुलडोज़र कार्रवाई को लेकर प्रशासन अब घिरता नज़र आ रहा है। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में नगर आयुक्त अभिजीत चौधरी ने स्वीकार किया है कि कार्रवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया गया। उन्होंने कोर्ट से माफ़ी मांगी है और कहा कि संबंधित अधिकारियों को शीर्ष अदालत के आदेश की जानकारी नहीं थी।
बिना नोटिस कार्रवाई, कोर्ट में सवाल
यह मामला मार्च 2025 में नागपुर में हुए सांप्रदायिक दंगे से जुड़ा है, जिसमें आरोपी बनाए गए लोगों की संपत्तियों पर कार्रवाई की गई। फहीम की मां मेहरूनिसा और 96 वर्षीय अब्दुल हाफिज़ ने कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि बिना किसी कानूनी नोटिस या सुनवाई के उनके घर गिरा दिए गए।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उनका नाम सिर्फ इसलिए कार्रवाई की सूची में आया क्योंकि उनके किसी रिश्तेदार पर दंगे में शामिल होने का आरोप था। उन्होंने कोर्ट से यह भी कहा कि उनके घर आंशिक रूप से नहीं बल्कि पूरी तरह तोड़े गए, और उन्हें बिल्कुल भी कानूनी प्रक्रिया की जानकारी नहीं दी गई।
सुप्रीम कोर्ट गाइडलाइन की अनदेखी
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, नगर आयुक्त चौधरी ने कोर्ट में दिए गए हलफनामे में माना कि कार्रवाई में सुप्रीम कोर्ट के 13 नवंबर 2024 के आदेश की उपेक्षा हुई। उस आदेश में साफ कहा गया था कि किसी भी दंगा आरोपी की संपत्ति तोड़ने से पहले पूरी कानूनी प्रक्रिया, नोटिस और सुनवाई सुनिश्चित की जाए।
हलफनामे में कहा गया कि टाउन प्लानिंग और स्लम विभाग के अधिकारियों को इस आदेश की जानकारी नहीं थी। इस चूक के चलते ही 24 घंटे के भीतर कार्रवाई शुरू कर दी गई, जो नियमों के खिलाफ था।

नगर आयुक्त ने यह भी बताया कि नागपुर पुलिस ने दंगा आरोपियों की संपत्तियों का विवरण मांगा था, जिसके बाद अधिकारियों ने साइट का निरीक्षण कर पाया कि कुछ संपत्तियाँ निर्माण नियमों के तहत अधिकृत नहीं थीं। इसके आधार पर स्लम एक्ट 1971 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किए गए, लेकिन जल्दबाज़ी में तोड़फोड़ शुरू कर दी गई।
कोर्ट का सरकार से सवाल
न्यायमूर्ति नितिन साम्ब्रे और न्यायमूर्ति वृषाली जोशी की बेंच ने महाराष्ट्र सरकार से दो सप्ताह में जवाब मांगा है। अदालत ने यह जानना चाहा है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश नगर निगम तक क्यों नहीं पहुँचाया गया, और क्या इस तरह की चूक प्रशासनिक लापरवाही का संकेत नहीं है?
यह भी पढ़ें:- नासिक में सतपीर दरगाह के अवैध ढांचे पर चला बुलडोज़र, पुलिस-प्रदर्शनकारियों में झड़प, 21 जवान घायल
इस मामले ने एक बार फिर ‘बुलडोज़र न्याय’ बनाम संवैधानिक प्रक्रिया की बहस को जन्म दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद ऐसी कार्रवाइयों से न्यायिक प्रक्रिया के साथ नागरिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। अदालत की सख्ती से यह उम्मीद जागी है कि आगे से कोई भी कार्रवाई कानून के दायरे में रहकर और पारदर्शी तरीके से की जाएगी।