नई दिल्ली | देश में जातिगत जनगणना को लेकर राजनीति चरम पर पहुंच गई है। मोदी सरकार के हालिया फैसले को कांग्रेस पार्टी ने ‘सामाजिक न्याय की दिशा में राहुल गांधी की बड़ी जीत’ करार दिया है। वहीं भाजपा इसे विपक्ष से मुद्दा छीनने की रणनीति मान रही है। दोनों पार्टियां अब इस मुद्दे को लेकर जनता के बीच प्रचार युद्ध में उतर चुकी हैं।
कांग्रेस का जनजागरण अभियान
कांग्रेस ने 30 मई तक पूरे देश में ‘संविधान बचाओ’ अभियान चलाने का ऐलान किया है। इसके तहत हर जिले और विधानसभा क्षेत्र में:
- रैलियां
- प्रेस कांफ्रेंस
- सोशल मीडिया प्रचार
- और स्थानीय कार्यक्रम
आयोजित किए जाएंगे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों को पत्र भेजकर सख्त निर्देश दिए गए हैं कि कार्यक्रम केवल औपचारिकता न हो — नियंत्रण कक्ष बनाए जाएं और जिला स्तर पर मॉनिटरिंग के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किए जाएं। सभी प्रदेशों से साप्ताहिक रिपोर्ट तलब की जा रही है।

राजनीतिक ब्रीफिंग के मुख्य बिंदु
कांग्रेस पार्टी अपने नेताओं और प्रवक्ताओं को नीचे दिए गए मुख्य बिंदुओं के साथ नियमित ब्रीफिंग देने की रणनीति पर काम कर रही है:
- जातिगत जनगणना की मांग को लेकर कांग्रेस की स्थायी भूमिका
- राहुल गांधी के नेतृत्व और CWC (कांग्रेस कार्यसमिति) का प्रस्ताव
- इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘अर्बन नक्सल’ और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ‘बंटोगे-कटोगे’ जैसा बयान
- 20 जुलाई 2021 को संसद में मोदी सरकार का बयान कि SC-ST के अलावा कोई अन्य जाति जनगणना में शामिल नहीं होगी
- 21 सितंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का हलफनामा जिसमें जनगणना से जातिगत गणना को बाहर रखने की नीति स्पष्ट की गई थी
- केंद्र सरकार से पूछा जाएगा कि अब जनगणना की समय-सीमा क्या होगी?
आरक्षण की सीमा और निजी क्षेत्र पर भी फोकस
कांग्रेस सिर्फ जाति जनगणना तक सीमित नहीं रहना चाहती। पार्टी ने आरक्षण की 50% सीमा तोड़ने के लिए संविधान संशोधन, और निजी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण लागू करने की मांग को भी जोर-शोर से उठाना शुरू किया है।
भाजपा बनाम कांग्रेस: श्रेय की लड़ाई
जहाँ भाजपा जातिगत जनगणना की पहल को अपनी “समावेशी नीति” का हिस्सा बता रही है, वहीं कांग्रेस इस पर श्रेय लेने की हर कोशिश को रोकना चाहती है। राहुल गांधी और पार्टी नेतृत्व मानते हैं कि भाजपा ने कांग्रेस के दबाव में आकर यह फैसला किया है।
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जातिगत जनगणना अब सिर्फ आंकड़ों का मुद्दा नहीं, बल्कि राजनीतिक संघर्ष की धुरी बन चुकी है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इसे आगामी चुनावों के लिए सामाजिक और सियासी रणनीति के रूप में देख रहे हैं। अगले कुछ महीनों में यह मुद्दा देश की राजनीतिक बहस का केंद्र बनने जा रहा है।