भारत और पाकिस्तान के बीच जब सैन्य और कूटनीतिक तनाव चरम पर है, ऐसे समय में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा पाकिस्तान को 1 अरब डॉलर का लोन मंजूर किया जाना कई सवाल खड़े कर रहा है। भारत ने इस निर्णय पर गहरी आपत्ति जताई है और चेतावनी दी है कि यह फंड सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने में इस्तेमाल किया जा सकता है।
भारत ने IMF की बैठक में इस लोन को लेकर मतदान से परहेज किया और यह संदेश दिया कि आतंकी गतिविधियों में संलिप्त देशों को बार-बार आर्थिक मदद देना वैश्विक मूल्यों का उल्लंघन है। भारत का यह भी कहना है कि इससे न केवल अंतरराष्ट्रीय फंडिंग एजेंसियों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है, बल्कि आतंक को अप्रत्यक्ष समर्थन भी मिलता है।
पाकिस्तान, जो IMF से बार-बार बेलआउट ले चुका है, इस समय संस्था के बड़े कर्जदारों में शामिल है। IMF का लोन फंडिंग सिस्टम जटिल है, जिसमें मेंबर कोटा, नई उधारी व्यवस्था (NAB) और द्विपक्षीय समझौते (BBA) शामिल हैं। भारत का IMF में योगदान 2.75% है, जबकि पाकिस्तान का योगदान केवल 0.43% है। इसके बावजूद पाकिस्तान बार-बार IMF से आर्थिक राहत हासिल करने में सफल रहा है।


IMF की कुल लोन क्षमता लगभग 932 अरब डॉलर है, जिसमें से अधिकांश योगदान अमेरिका, चीन, यूरोपीय यूनियन और जापान जैसे देशों से आता है। सदस्य देश IMF से लोन तभी ले सकते हैं जब वे संस्था की शर्तों को स्वीकार करते हैं। हालांकि, भारत का आरोप है कि पाकिस्तान बार-बार इन शर्तों का उल्लंघन करता रहा है और इस सहायता का उपयोग आतंकवाद को समर्थन देने में करता है।
IMF के सबसे बड़े कर्जदारों में अर्जेंटीना (40.9 अरब डॉलर), यूक्रेन (14.6 अरब डॉलर) और मिस्र के बाद पाकिस्तान (8.3 अरब डॉलर) आता है। भारत ने 1993 के बाद कभी भी IMF से कर्ज नहीं लिया है, जबकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बार-बार इस अंतरराष्ट्रीय संस्था की बैसाखी पर खड़ी दिखाई देती है।
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इस विवादास्पद निर्णय से उपमहाद्वीप में पहले से तनावपूर्ण हालात और गंभीर हो सकते हैं। भारत की चिंता यह भी है कि IMF की मदद से पाकिस्तान सैन्य संसाधनों और आतंकी नेटवर्क को मजबूत कर सकता है, जिससे सीमा पार हमलों में वृद्धि हो सकती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या IMF को अपनी फंडिंग नीति पर पुनर्विचार नहीं करना चाहिए, खासकर जब बात वैश्विक सुरक्षा और स्थिरता की हो?