इजरायल और हमास के बीच लंबे समय से चल रहे संघर्ष के बीच एक बड़ी मानवीय खबर सामने आई है। हाल ही में हमास ने अमेरिकी-इजरायली बंधक एडन अलेक्जेंडर (Edan Alexander) को रिहा कर दिया है, जिन्हें 7 अक्टूबर 2023 को इजरायली मिलिट्री कैंप से अगवा किया गया था। यह रिहाई अमेरिका, मिस्र, कतर और हमास के बीच हुई चार-पक्षीय वार्ता के बाद संभव हो सकी है। परंतु रिहाई के बाद एक अप्रत्याशित मोड़ तब आया जब एडन ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से मिलने से इनकार कर दिया।
एडन अलेक्जेंडर मूल रूप से अमेरिका के न्यू जर्सी के रहने वाले हैं। 2022 में हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे इजरायल चले गए थे और वहां की सेना में शामिल हो गए। जब हमास ने 7 अक्टूबर को सीमा पार हमला किया था, तब एडन अपने मिलिट्री बेस पर डटे रहे। आतंकवादियों ने इसी दौरान उन्हें बंधक बना लिया था, साथ ही लगभग 250 अन्य लोगों को भी अगवा किया गया था। इनमें से कुछ बंधकों को पहले हुए युद्धविराम समझौते के तहत रिहा कर दिया गया था।
मार्च 2025 में इजरायल द्वारा हमास के साथ आठ सप्ताह के युद्धविराम को तोड़ने के बाद यह पहली रिहाई है। इस रिहाई को इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने एक “भावुक क्षण” बताया। उन्होंने एक बयान में कहा, “यह हमारे सैन्य दबाव और अमेरिका की ओर से डाले गए राजनीतिक दबाव का परिणाम है। एडन का वापस आना हम दोनों की जीत है।”

हालांकि, नेतन्याहू के इस बयान के बावजूद, एडन ने उनसे मुलाकात करने से इनकार कर दिया है। इजरायली मीडिया के अनुसार, एडन इस समय शारीरिक और मानसिक रूप से बेहद कमजोर हैं और किसी भी प्रकार की राजनीतिक या औपचारिक मुलाकात के लिए खुद को तैयार महसूस नहीं कर रहे। इजरायली चैनल ‘चैनल 12’ ने बताया कि एडन अभी एक तरह के पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस (PTSD) से गुजर रहे हैं और उन्हें चिकित्सकीय देखभाल और मानसिक विश्राम की जरूरत है।
विशेषज्ञों का मानना है कि लंबी कैद और मानसिक उत्पीड़न के बाद किसी बंधक का भावनात्मक रूप से टूट जाना सामान्य बात है। एडन का नेतन्याहू से मिलने से इनकार करना इस बात को दर्शाता है कि बंधकों की रिहाई के बाद उनका पुनर्वास भी एक लंबी प्रक्रिया है।
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कतर और मिस्र जैसे मध्यस्थ देशों ने इस रिहाई को सकारात्मक कदम बताया है और उम्मीद जताई है कि इससे बाकी बचे 58 बंधकों की रिहाई की दिशा में भी प्रगति होगी। फिलहाल, एडन की वापसी से उनके परिवार और अमेरिकी सरकार ने राहत की सांस ली है, लेकिन यह घटना एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि युद्ध के मानवीय पहलुओं को किस तरह संभाला जाए।