भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य तनाव के बीच, पंजाब के तरनतारन जिले का एक शांत-सा गांव अचानक सुर्खियों में आ गया है — जाति उमरा, जो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ का पैतृक गांव है। अमृतसर से महज़ 35-40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह गांव अब भावनाओं, उम्मीदों और चिंताओं का केंद्र बन गया है।
शहबाज़ शरीफ़ का नाता जाति उमरा से
इस गांव में कभी शहबाज़ और नवाज़ शरीफ़ के पिता मियां मुहम्मद शरीफ़ का पुश्तैनी घर हुआ करता था। 2013 में, जब शहबाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के पंजाब के मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने यहां आकर अपने परदादा मियां मुहम्मद बख्श की मजार पर चादर चढ़ाई थी। अब इस जमीन पर एक भव्य गुरुद्वारा खड़ा है, जिसकी सेवा और निर्माण का काम गांववाले कर रहे हैं।
गांववालों की मिली-जुली भावनाएं
गांव के सेना से रिटायर्ड गुरपाल सिंह, जो इस समय गुरुद्वारे में लंगर हॉल बनवा रहे हैं, कहते हैं:
“हमें शरीफ़ परिवार से उम्मीदें हैं, लेकिन जब पाकिस्तान की ओर से भारत के खिलाफ कोई ग़लत हरकत होती है, तो शर्म महसूस होती है। ऐसा लगता है जैसे हमारे ही गांव का कोई व्यक्ति आतंकवाद का समर्थन कर रहा हो।”

वहीं, गांव के पूर्व सरपंच दिलबाग सिंह का रुख सख्त है:
“अगर शरीफ़ परिवार आतंकवाद या हिंसा का समर्थन कर रहा है, तो उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए, चाहे हमारे रिश्ते उनसे कैसे भी हों।”
बलविंदर सिंह, जिनका परिवार शहबाज़ शरीफ़ के परदादा की मजार की देखरेख करता है, कहते हैं:
“हम चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच शांति हो। आतंकवाद का समाधान युद्ध से नहीं, बल्कि बातचीत से निकले।”
भारत-पाक तनाव और गांव की चिंता
गांववालों का कहना है कि वे किसी मिसाइल, बम या युद्ध का हिस्सा नहीं बनना चाहते। ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद की घटनाओं ने उन्हें परेशान कर दिया है। एकता, शांति और व्यापार की बात करने वाले इस गांव को इस बात से दुख है कि शहबाज़ शरीफ़ की सरकार ऐसा कोई ठोस कदम नहीं उठा रही जिससे दोनों देशों के बीच तनाव कम हो।
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जाति उमरा गांव एक अनोखा उदाहरण है — एक ऐसा स्थान जो इतिहास, जड़ें और भावनाओं से जुड़ा है, लेकिन आज के हालात में खुद को संवेदनशील मोड़ पर खड़ा पाता है। यहां के लोगों की आवाज भारत और पाकिस्तान के नेताओं तक पहुंचनी चाहिए — वो आवाज जो शांति, समझदारी और संबंधों के सुधार की बात करती है, न कि गोली-बंदूक की।