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सिंधु जल संधि पर फिर बातचीत को तैयार पाकिस्तान, भारत की सख्त शर्तें बरकरार

पाकिस्तान ने भारत के साथ सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty – IWT) पर फिर से बातचीत की इच्छा जताई है। यह संकेत पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव सैयद अली मुर्तजा ने हाल ही में दिए। उन्होंने इस संधि को स्थगित करने के भारत के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस संधि में कोई “एग्जिट क्लॉज” (समाप्ति की शर्त) नहीं है। यह प्रतिक्रिया भारत द्वारा संधि को स्थगित करने के कुछ समय बाद आई है, जब पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के आतंकवाद समर्थन को आधार बनाकर संधि पर रोक लगाई थी।

भारत ने पहले दो बार की थी बातचीत की पेशकश

जनवरी 2023 और सितंबर 2024 में भारत ने पाकिस्तान को IWT पर बातचीत का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उस समय पाकिस्तान ने कोई रुचि नहीं दिखाई। अब, भारत की सख्त कार्रवाई और कूटनीतिक दबाव के बाद, पाकिस्तान ने संधि पर फिर से चर्चा की इच्छा जाहिर की है।

भारत की शर्तें – आतंकवाद रोको, तभी बातचीत होगी

भारत का रुख साफ है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने 13 मई को स्पष्ट किया कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता, IWT पर बातचीत नहीं होगी। यही संदेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद राष्ट्र को संबोधित करते हुए भी दिया था। उन्होंने कहा था, “पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते।”

भारत अब सिंधु नदी प्रणाली पर बांध और जलाशयों के ज़रिए पानी को रोककर उसका उपयोग बिजली उत्पादन और सिंचाई के लिए कर सकता है। पाकिस्तान को डर है कि इससे ग्राउंड पर यथास्थिति बदल जाएगी, और वह इस विकास को रोकना चाहता है।

1960 की संधि का क्या था प्रावधान?

19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से सिंधु जल संधि हुई थी। इसके तहत:

  • पूर्वी नदियाँ (सतलुज, रावी और व्यास) भारत को मिलीं।
  • पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम और चिनाब) पाकिस्तान को आवंटित की गईं।

विशेषज्ञों की राय

भारत में कूटनीतिक और जल संसाधन विशेषज्ञ मानते हैं कि अब समय आ गया है कि भारत इस संधि को नए सिरे से परखे। पाकिस्तान की दोहरी नीति – एक तरफ बातचीत की पेशकश, दूसरी तरफ आतंकवाद – भारत के लिए अस्वीकार्य है।

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पाकिस्तान की मौजूदा इच्छा बातचीत की है, लेकिन भारत का स्पष्ट रुख है – जब तक सीमा पार आतंकवाद नहीं रुकेगा, तब तक न पानी मिलेगा, न बातचीत होगी। सिंधु जल संधि अब सिर्फ एक जल समझौता नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति का अहम हिस्सा बन गई है।

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