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सजायाफ्ता विधायक कंवरलाल मीणा की माफी पर बवाल, कांग्रेस का राज्यपाल को पत्र

जयपुर – अंता से भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा की तीन साल की सजा को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल हरिभाऊ बागडे से मुलाकात कर मीणा की सजा माफ नहीं करने की अपील की।

कांग्रेस का आरोप: सजा माफी के लिए दबाव डाल रही भाजपा

राज्यपाल को सौंपे गए पत्र में कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि भाजपा संवैधानिक प्रक्रिया की अनदेखी करते हुए, सजायाफ्ता विधायक को बचाने की कोशिश कर रही है। जूली ने कहा कि विधायक कंवरलाल मीणा को न्यायालय से 3 वर्ष की सजा मिल चुकी है, जिससे उनकी सदस्यता स्वतः समाप्त होनी चाहिए थी, लेकिन भाजपा सरकार राजनीतिक प्रभाव का प्रयोग कर रही है।

“161 का दुरुपयोग न हो” – राज्यपाल को सौंपा गया ज्ञापन

ज्ञात हो कि संविधान का अनुच्छेद 161 राज्यपाल को विशेष अधिकार देता है, जिसके तहत वह किसी दोषी की सजा को माफ, कम या निलंबित कर सकते हैं। कांग्रेस ने राज्यपाल से मांग की कि इस विशेषाधिकार का दुरुपयोग न हो और सजायाफ्ता विधायक को माफी न दी जाए।

कांग्रेस नेताओं ने उदाहरण देते हुए कहा कि राहुल गांधी को मानहानि मामले में 2 साल की सजा के 24 घंटे के भीतर लोकसभा सदस्यता समाप्त कर दी गई थी, जबकि कंवरलाल मीणा की सजा के 19 दिन बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। डोटासरा ने इसे “संविधान पर हमला” करार दिया।

विधानसभा अध्यक्ष पर भी उठाए सवाल

डोटासरा ने विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया और विधानसभा की एक समिति से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा कि अगर अध्यक्ष संविधान की भावना के अनुसार काम नहीं करेंगे, तो कांग्रेस अगली रणनीति तय करेगी।

भाजपा का पलटवार – “अगर विश्वास नहीं तो विधायक पद छोड़ें”

भाजपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ ने डोटासरा पर पलटवार करते हुए कहा कि यदि उन्हें विधानसभा अध्यक्ष या पूरी विधानसभा पर विश्वास नहीं है, तो उन्हें विधायक पद से भी इस्तीफा दे देना चाहिए। राठौड़ ने कहा कि डोटासरा राज्यपाल के अधिकार पर भी सवाल उठा रहे हैं, जो कि असंवैधानिक है।

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यह विवाद एक ओर संविधान के अनुच्छेद 161 और विधायकों की सदस्यता को लेकर कानूनी व्याख्या की ओर इशारा करता है, वहीं दूसरी ओर यह स्पष्ट करता है कि दोनों प्रमुख दल — भाजपा और कांग्रेस — इस मुद्दे को राजनीतिक मोर्चे पर भी पूरी ताकत से भुना रहे हैं। अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि राज्यपाल क्या निर्णय लेते हैं और विधानसभा अध्यक्ष इस पर क्या कार्रवाई करते हैं।

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