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सीधी: बैगा परिवारों के साथ लूट का आरोप, जांच टीम पर पक्षपात का आरोप

सीधी, मध्य प्रदेश:
सीधी जिले के मझौली जनपद पंचायत अंतर्गत ग्राम पंचायत खंतरा में बैगा जनजाति के परिवारों से प्रधानमंत्री जन-मन आवास योजना के तहत कथित लूट का मामला सामने आया है। प्रभावित परिवारों ने सरपंच और सचिव पर योजनाओं का लाभ दिलाने के नाम पर अवैध वसूली करने और मजदूरी की राशि हड़पने का आरोप लगाया है।

क्या है मामला?

शिकायतों के अनुसार, प्रधानमंत्री जन-मन आवास योजना के तहत बैगा परिवारों को 2 लाख रुपये की आवास सहायता स्वीकृत की गई थी।

  • आरोप:
    • सरपंच लालू लाल बैस ने हर लाभार्थी से 10 से 30 हजार रुपये की अवैध वसूली की।
    • पैसा न देने वालों का नाम योजना की सूची से हटा दिया गया।
    • आवास निर्माण में मिलने वाली मजदूरी की राशि को लाभार्थियों से यह कहकर निकलवा लिया गया कि यह सरपंच के निर्माण कार्य की मजदूरी है।
    • फर्जी मस्टर रोल के जरिए मजदूरी राशि निकालने का भी आरोप है।

प्रभावित परिवारों की मांग

बैगा समुदाय के लोगों ने जिला स्तर पर निष्पक्ष जांच की मांग की है। उनका कहना है कि जांच टीम पक्षपात कर रही है और दोषियों को बचाने का प्रयास हो रहा है।

राम विशाल बैगा, एक प्रभावित हितग्राही ने कहा,
“हमारे कथन को सही से नहीं लिखा गया। हम दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और हमारी वसूली गई राशि की वापसी चाहते हैं।”

लालमणि बैगा ने आरोप लगाया,
“जांच अधिकारी सही बातें नहीं लिख रहे हैं, जिससे हमें न्याय मिलने में संदेह है।”

जांच टीम और अधिकारियों का पक्ष

मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) ज्ञानेंद्र मिश्र ने तत्काल जांच टीम गठित कर 28 नवंबर को प्रभावित क्षेत्र में भेजा।

  • जांच अधिकारी रोशन लाल गुभा ने कहा:
    “यह प्राथमिक जांच है। आगे विभागीय और जिला स्तर की जांच भी होगी। दोषी किसी भी हालत में बच नहीं सकते।”

सीईओ मझौली ज्ञानेंद्र मिश्र ने कहा,
“जिला स्तर पर भी जांच के आदेश दिए जाएंगे ताकि प्रभावितों को न्याय मिल सके।”

प्रभावित परिवारों का आरोप

जांच टीम ने कथित रूप से पीड़ितों के बयान सही से नहीं दर्ज किए और सरपंच एवं सचिव को बचाने की कोशिश की।

अगली कार्रवाई

  • जिला पंचायत स्तर से जांच टीम का गठन होगा।
  • निष्पक्ष रिपोर्ट तैयार कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
  • वसूली गई राशि वापस दिलाने के लिए प्रशासनिक कदम उठाए जाएंगे।

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यह मामला आदिवासी समुदाय के अधिकारों और सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है। प्रशासन की अगली कार्रवाई पर सभी की निगाहें टिकी हैं।

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